विद्या, विनय और विवेक हैं सफलता के आधार :  आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

विद्या, विनय और विवेक हैं सफलता के आधार : आचार्यश्री महाश्रमण

अध्यात्म के शिखर पुरुष आचार्य श्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ कंदारी के मानव केंद्र ज्ञान मंदिर में पधारे। ज्ञान सिंधु ने अपनी अमृतमयी देशना से ज्ञान का पीयूष पिलाते हुए कहा कि जो अविनीत और उद्दंड होता है, उसे विपत्ति मिलती है, जबकि जो विनीत, मृदु और विनयशील होता है, उसे संपत्ति की प्राप्ति होती है। विपत्ति और संपत्ति एक-दूसरे से विपरीत स्थितियां हैं।अविनीत को विपत्ति क्यों मिलती है? इसका समाधान देते हुए उन्होंने कहा कि अविनीत और उद्दंड व्यक्ति की आत्मा कलुषित और अपवित्र हो जाती है। आत्मा की दृष्टि से इसका नुकसान भी विपत्ति ही है। व्यवहार की दृष्टि से देखें तो अविनीत व्यक्ति को कोई अपनाना नहीं चाहता। उसे मित्र, पुत्र या सहयोगी के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता। हर स्थिति में उसे प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर, जो विनीत होता है, उसे सभी पसंद करते हैं।
उन्होंने बताया कि विद्यार्थी में विद्या के साथ-साथ विनय और विवेक का भाव होना चाहिए। जीवन के विकास में ये तीनों आवश्यक हैं। तभी वह जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है। विद्या, विनय और विवेक के सुमंगल दीप जलाकर जीवन को सुफल बनाने का प्रयास करें। ज्ञान के विकास के लिए परिश्रम करना आवश्यक है। विद्यार्थी को पढ़ाई में लगन और अध्ययन के प्रति परिश्रमशील रहना चाहिए। आचार्यश्री ने कहा कि विद्या से विनय प्राप्त होता है। विनय से व्यक्ति पात्र बनता है, और पात्रता के बाद धन, धर्म और सुख की प्राप्ति होती है। विनय से ज्ञान शोभित होता है। विनयशीलता जीवन का एक महान सद्गुण है। इसके साथ-साथ व्यक्ति में हित और अहित का विवेक भी होना चाहिए। विद्यार्थी हिंसा से दूर रहें और अपने मन में अहिंसा का भाव बनाए रखें।
पूज्य प्रवर का इस विद्यालय में गत वर्ष भी पधारना हुआ था। आज इस विद्यालय में पुनः आना हुआ। पूज्य प्रवर ने विद्यार्थियों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रतिज्ञाएँ समझाकर उन्हें संकल्प स्वीकार करवाए। मानव केंद्र ज्ञान मंदिर के प्रिंसिपल महेंद्र सिंह ने पूज्य प्रवर का स्वागत करते हुए अपनी भावना अभिव्यक्त की। विद्यार्थियों ने आचार्यश्री के स्वागत में सुमधुर गीत प्रस्तुत किया। कई चतुर्मास के बाद गुरुदर्शन करने वाली साध्वी पुण्यप्रभाजी ने अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं और सहवर्ती साध्वियों के साथ गीत का संगान किया। पूज्य प्रवर ने साध्वियों को पावन आशीर्वाद प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।