जीवन में कमाऊ पूत की तरह करें धर्म साधना : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में कमाऊ पूत की तरह करें धर्म साधना : आचार्यश्री महाश्रमण

अमृत पुरुष आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ वरेड़िया के प्राथमिक मिश्र शाला में पधारे। प्रज्ञा पुरुष ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि जीवन को चार भागों में बांटा जा सकता है। प्रथम पच्चीस वर्ष शिक्षा के, बाद के पच्चीस वर्ष गृहस्थ जीवन में कमाई, विवाह, संतान आदि में लग जाते हैं। अगले 25 वर्ष वानप्रस्थ आश्रम और फिर 75 के बाद का समय तो संन्यास में लगा देना चाहिए। यह चार आश्रमों का मार्गदर्शन है जो जीवन के विभिन्न पड़ावों पर मोड़ लेना की प्रेरणा देता है। 75 वर्ष के बाद तो गृहस्थ में रहते हुए भी निवृत्ति की ओर बढ़ना चाहिए। सामाजिक कार्यों से भी मुक्ति लेकर अपना समय आध्यात्मिक सेवा व धर्म ध्यान में लगाना चाहिए।
हमारे चतुर्थ आचार्य श्रीमद् जयाचार्य तो संत होते हुए भी पचहत्तर वर्ष से पहले ही निवृत्ति लेकर साधना व धर्म ध्यान में लग गए। हम सब तीर्थंकर भगवान के बेटे हैं, हमें जो मनुष्य जन्म मिला है, उसमें धर्म ध्यान-अध्यात्म की पूंजी इकट्ठी करें। यह कमाने वाले पुत्र के समान है। जो मनुष्य जन्म पाकर भी धर्म-ध्यान नहीं करते, न ज्यादा पाप करते हैं, उन्होंने मूल पूंजी को सुरक्षित रख लिया। कुछ ऐसे मनुष्य जो बुरे कामों में, बुरे पापों में लिप्त होते हैं, वे मरकर नरक में जाते हैं और मूल को ही गंवा देते हैं।
मनुष्य जन्म मूल पूंजी है, देवगति में जाना लाभ कमाना है और नरक-तिर्यन्च में जाने वाले मूल पूंजी गंवाने वाले होते हैं। गृहस्थों को ध्यान देना चाहिए कि हम किस प्रकार जी रहे हैं? मूल को बढ़ाया है, मूल को सुरक्षित रखा है या मूल को ही गंवा दिया है? जीवन में धर्म-अध्यात्म की साधना करें, कमाऊ पूत की तरह बनें। सम्यक्त्व अवस्था में आयुष्य बंधा है तो वह देवगति में जाएगा। मिथ्यात्व अवस्था में आयुष्य का बंध होगा तो वह आगे मनुष्य या तिर्यंच गति में जाएगा। हमें तो मोक्ष को प्राप्त करना है। मानव जन्म पूंजी को हम धर्म साधना कर शत गुणित करने का प्रयास करें।
पूज्यवर के स्वागत में प्राथमिक मिश्र शाला की प्रिंसिपल शमीम बेन ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।