शिक्षा आजीविका का साधन नहीं, जीवन निर्माण का लक्ष्य हो
आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि जिनेश कुमार जी का जे. आई. एस. ग्रुप के मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों के मध्य प्रवचन हुआ। इस अवसर पर मुनिश्री ने कहा प्रत्येक व्यक्ति सफलता चाहता है। सफलता चाहने मात्र से प्राप्त नहीं होती है। सफलता के लिए सघन पुरुषार्थ जरूरी होता है। सफलता का महत्त्वपूर्ण सूत्र है- सहिष्णुता। अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थति में संतुलित रहने वाला व्यक्ति सफलता को प्राप्त होता है। केवल धन कमाना ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए।
जीवन में सेवाभाव भी होना चाहिए। व्यक्ति सदाचार व स्वालम्बन का जीवन जीए, नशामुक्त रहे। नशा जीवन को बर्बाद करता है। मुनि श्री ने आगे कहा व्यक्तित्व विकास में संयम की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, सकारात्मक चिंतन से जीवन निर्मल बनता है, आदतों का परिष्कार होता है। चरित्र से बढकर कोई शक्ति नहीं है। चरित्र गया तो सब कुछ गया। वही शिक्षा उपयोगी है जिसमें चरित्र का समावेश हो। शिक्षा सत्यं शिवं, सुन्दर का समन्वित रुप है। शिक्षा केवल आजीविका का साधन न हो जीवन निर्माण का लक्ष्य होना चाहिए। मुनिश्री ने अनेक सम समायिक विषयों के बारे में बताते हुए ध्यान के प्रयोग कराए और विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान दिया। मुनि कुणाल कुमार जी ने गीत का संगान किया। तेरापंथ सभा, साउथ हावड़ा के अध्यक्ष लक्ष्मीपत बाफणा ने आभार व्यक्त किया।