स्व-पर कल्याण में करें शक्ति का उपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

स्व-पर कल्याण में करें शक्ति का उपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण

युगपुरुष आचार्यश्री महाश्रमणजी इन्द्राणज से लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर अपनी धवल सेना के साथ गलियाणा प्राथमिकशाला पधारे। जिनवाणी की अमृत वर्षा करते हुए महामनीषी ने फरमाया - हमारे जीवन में शक्ति का अत्यंत महत्व है। जिसके पास बल होता है, उसका प्रभाव अधिक होता है। संसार में अनेक प्रकार के बल विद्यमान हैं—तन बल, वचन बल, मन बल, जन बल, धन बल और आत्म बल। इनमें आत्म बल सबसे बड़ा बल है। इसके अतिरिक्त, बुद्धि बल भी महत्वपूर्ण है।
बुद्धि के बल पर आदमी बहुत बढिया कार्य भी कर सकता है तो उससे घटिया कार्य को भी कर सकता है। जिसके पास बुद्धि होती है, वह बौद्धिक बल का स्वामी होता है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमें जो भी बल प्राप्त हो, उसका दुरुपयोग न हो। बल का सदुपयोग करना चाहिए, ताकि वह लाभदायक हो। जो व्यक्ति शक्ति का दुरुपयोग करता है, उसकी शक्ति धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है, और भविष्य में उसे शक्ति प्राप्त होना भी कठिन हो जाता है। उदाहरण के तौर पर, दुर्जन व्यक्ति के पास विद्या हो तो वह उसका दुरुपयोग कर सकता है, विवाद उत्पन्न कर सकता है। इसके विपरीत, सज्जन व्यक्ति उसी विद्या का उपयोग ज्ञान के प्रसार और समस्याओं के समाधान के लिए करता है।
यदि दुर्जन व्यक्ति के पास धन हो तो वह धन का अहंकार करता है। जबकि सज्जन व्यक्ति अपने धन का उपयोग दान और परोपकार में करता है। इसी प्रकार, दुर्जन व्यक्ति यदि शक्ति बल का स्वामी हो, तो वह दूसरों को कष्ट पहुंचाने का प्रयास करता है। वहीं, सज्जन व्यक्ति अपनी शक्ति का उपयोग दूसरों की सेवा और रक्षा के लिए करता है। शक्ति का समुचित और अच्छे कार्यों में प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए। शरीर में बल हो तो सेवा कार्य किया जा सकता है। किसी बीमार, असहाय की सहायता की जा सकती है। धन की शक्ति है तो उससे किसी का कल्याण हो सके, ऐसा प्रयास करना चाहिए। ज्ञान का अच्छा बल हो तो किसी दूसरे को ज्ञान प्रदान करने में सदुपयोग करना चाहिए। वचन का बल हो तो लोगों को अच्छा उद्बोधन, धर्म के प्रचार भी प्रदान किया जा सकता है। किसी को अच्छी सलाह भी दी जा सकती है। हालांकि सलाह भी सुपात्र को ही देनी चाहिए। शक्ति का प्रयोग स्वयं और दूसरों के कल्याण में करना चाहिए। विद्या संस्थानों का संचालन भी इसी भावना से होना चाहिए।
मोटेरा-कोटेश्वर ज्ञानशाला के बच्चों ने 'चरचा धारो रे' गीत का सुमधुर संगान किया। पूज्यवर ने उन्हें आशीर्वचन प्रदान किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में हांसी, अहमदाबाद और मध्यप्रदेश आदि क्षेत्रों से काफी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।