चित्त की एकाग्रता, निर्विचारता और योग निरोध को प्राप्त करना है ध्यान का उद्देश्य  :  आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

चित्त की एकाग्रता, निर्विचारता और योग निरोध को प्राप्त करना है ध्यान का उद्देश्य : आचार्यश्री महाश्रमण

ध्यान योगी आचार्य श्री महाश्रमण जी 12 किमी का विहार कर स्थित सुमन जेठाभाई पटेल इंग्लिश मीडियम स्कूल, इन्द्राणज पधारे। अंतर्राष्ट्रीय ध्यान दिवस के अवसर पर मंगल देशना प्रदान करते हुए शांतिदूत ने फरमाया कि धर्मशास्त्रों में ध्यान और स्वाध्याय का वर्णन उपलब्ध है। ध्यान से संबोध (जागरण) की प्राप्ति संभव है। ध्यान हमारे मन और चित्त से जुड़ा हुआ एक तत्व है। यह शरीर और वाणी से भी संबद्ध हो सकता है। वर्तमान में संसार में ध्यान और योग की व्यापक चर्चा होती है। योग में अष्टांग योग उपलब्ध है, जिसमें अहिंसा, शौच, संतोष आदि की बात कही गई है। आसन, प्राणायाम आदि का भी इसमें समावेश है।
अनेक प्रकार की ध्यान पद्धतियां प्रचलित हैं। हमारे यहां प्रेक्षाध्यान की पद्धति प्रचलित है, जिसे परम पूज्य आचार्य श्री तुलसी के समय में प्रारंभ किया गया था। यह पद्धति लगभग पचास वर्षों से जारी है। ध्यान का मूल उद्देश्य चित्त की एकाग्रता, निर्विचारता और योग निरोध को प्राप्त करना है। मन का चंचल स्वभाव कैसे कम हो, चित्त कैसे स्थिर हो, और व्यक्ति राग-द्वेष से मुक्त होकर वीतरागता की ओर कैसे बढ़े—यह सब ध्यान के माध्यम से साधा जा सकता है। ध्यान के अभ्यास से सिद्धियां और लब्धियां प्राप्त हो सकती हैं। ध्यान का अभ्यास करते समय ध्यान रखें कि सिद्धियों का दुरुपयोग न हो और अहंकार न आए। ध्यान के माध्यम से वीतरागता में प्रविष्ट होने की भूमिका तैयार करें। धर्म और अध्यात्म की साधना करें। तपस्या से प्राप्त लब्धियों का सदुपयोग करें। ध्यान एक व्यापक और गहन प्रक्रिया है, जो चित्त की शुद्धि में सहायक है।
परम पूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने ध्यान के प्रयोग को शिविरों के माध्यम से नई ऊंचाई तक पहुंचाया। आज भी देश-विदेश के अनेक साधक प्रेक्षाध्यान शिविरों में भाग लेते हैं। हर क्रिया में जागरूकता बनी रहनी चाहिए। ध्यान अर्थात् आदमी चलते हुए भी जागरूक रहे। बोलते हुए, बैठे हुए, भोजन करते हुए भी जागरूक और सजग रहे तो ध्यान की पुष्टता हो सकती है। शरीर की अनावश्यक चंचलता से बचना चाहिए। प्रेक्षाध्यान में चित्त की एकाग्रता और स्थिरता बढ़ाने के लिए कई प्रयोग किए जाते हैं। ध्यान अध्यात्म साधना का एक अनिवार्य अंग है। छोटे-छोटे ध्यान के प्रयोग भी जीवन में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। आचार्यप्रवर ने प्रवचन के मध्य उपस्थित जनता को कुछ देर तक ध्यान का प्रयोग भी कराया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।