सुनकर कल्याण को ग्रहण करने का करें प्रयास :आचार्यश्री महाश्रमण
भिक्षु गणश्रेष्ठ आचार्यश्री महाश्रमण जी बोचासन से लगभग 11 किमी का विहार कर मानेज के मणि-लक्ष्मी तीर्थ पधारे। आर्हत वाणी का रसास्वादन कराते हुए महामनीषी ने फरमाया कि सुनना, बोलना, देखना, खाना-पीना, चलना-फिरना जैसे कार्य हमारे जीवन का हिस्सा हैं। हमारे पास कान और आंखें हैं, जो बाह्य ज्ञान प्राप्त करने के सक्षम माध्यम हैं। मनुष्य सुनकर कल्याण को भी समझ सकता है और पाप को भी। तीर्थंकरों की वाणी, आचार्यों और साधुओं के प्रवचन सुनकर व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है। धार्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए सुनना एक श्रेष्ठ माध्यम है। ग्रंथों का पठन भी ज्ञान प्राप्त करने का एक प्रभावी साधन है। जैन विश्व भारती में अनेक ग्रंथ उपलब्ध हैं।
यदि सिखाने वाला योग्य हो, तो जिज्ञासाओं का समाधान भी मिल सकता है। गुरु-ज्ञाता ज्ञान को स्पष्ट करते हैं। जब कान और आंख दोनों से ज्ञान ग्रहण किया जाता है, तो बात स्पष्ट और पुष्ट हो जाती है। सुनने के बाद प्राप्त ज्ञान के आधार पर हेय और उपादेय का विवेक समझा जा सकता है। हेय को त्यागें और ग्रहण करने योग्य को अपनाएं। नौ तत्वों में से संवर और निर्जरा उपादेय हैं। ज्ञान प्राप्त होने पर मनुष्य विवेकशील बन जाता है।
श्रमण की उपासना के दस लाभ बताए गए हैं, जिनमें पहला लाभ है—सुनने का लाभ। सुनने से ज्ञान प्राप्त होता है, इसके बाद प्रत्याख्यान, संयम, अनाश्रव, तपस्या, और कर्मों की निर्जरा होती है। अक्रिया और योग-निरोध के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। मूल से आगे विकास संभव है। गुरु का मौन भी एक प्रकार का व्याख्यान बन जाता है। गुरु के आचरण और व्यवहार को देखकर भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। सुनाने वाला श्रुतसम्पन्न और अच्छा वक्ता होना चाहिए। श्रोता को भी सुनने की क्षमता रखनी चाहिए। वक्ता और श्रोता का आपसी संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण है। ज्ञान केवल साधुओं या गुरुओं से ही नहीं, बल्कि गृहस्थों से भी प्राप्त किया जा सकता है। जहां से भी अच्छा ज्ञान मिले, उसे ग्रहण करें। उदाहरण के लिए, कोई डॉक्टर चाहे किसी भी जाति का हो, यदि वह अच्छा विशेषज्ञ है, तो उसका इलाज बेहतर होता है। इसी प्रकार, यदि गुरु ज्ञानी हो, तो यह सोने पर सुहागा जैसी स्थिति होती है।
पूज्य आचार्य भिक्षु में ज्ञान की असीम गहराई थी। वक्ता, ज्ञाता और श्रोता तीनों का समन्वय ज्ञान की प्रक्रिया को सफल बनाता है। सुनकर कल्याण को ग्रहण करें और पाप को त्यागने का प्रयास करें। मणि-लक्ष्मी तीर्थ के मैनेजर निकुंज भाई पटेल ने पूज्यवर के स्वागत में अपनी भावनाएं व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।