साधना से प्राप्त हो सकता है भीतर छिपा सुख : आचार्यश्री महाश्रमण
पौष कृष्ण पंचमी का पावन दिवस। गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी का 100वां दीक्षा दिवस। गुरुदेव तुलसी के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमणजी का तारापुर सार्वजनिक हाईस्कूल पदार्पण हुआ। मंगल देशना प्रदान करते हुए पूज्यवर ने कहा कि जैन ग्रंथों में चौबीस तीर्थंकरों का उल्लेख मिलता है। भरत क्षेत्र के इस अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव थे और अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी हुए। जैन धर्म में मनुष्यों में सर्वोच्च स्थान तीर्थंकरों का होता है। अध्यात्म के क्षेत्र में अधिकृत सत्य का उपदेश देने वाले ये परम पद पर स्थित हैं। सोलहवें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ, जो चक्रवर्ती सम्राट भी थे, तीर्थंकर बनकर मोक्ष पथ पर अग्रसर हुए। शांतिनाथ के नाम में निहित 'शांति' हमें सिखाती है कि हर व्यक्ति शांति और सुख का आकांक्षी है।
सुख और सुविधा में मौलिक भिन्नता है। पाप कर्मों की निर्जरा से जो परिणाम उभरता है, वही सुख है। सुख का स्रोत भीतर है, जबकि सुविधा का संबंध भौतिकता से है। सुख आध्यात्मिक मार्ग से प्राप्त होता है, जबकि सुविधा बाहरी साधनों से। अध्यात्म की साधना से पुण्य का बंधन होता है, और उससे सच्चे सुख की प्राप्ति होती है। साधनाशील साधुओं के पास भौतिक सुविधाएं नहीं होती, फिर भी वे सुख और शांति से जीवन व्यतीत करते हैं। इसके विपरीत, गृहस्थों के पास भौतिक वस्तुएं होती हैं, लेकिन उन्हें साधुओं जैसा सुख नहीं मिलता।
व्यक्ति का भय, क्रोध, और मोह जब क्षीण हो जाता है, तो भीतर का सुख प्रकट होता है। यह सुख हमारे भीतर एक खजाने की तरह है, जिसे पहचानने और निकालने का प्रयास होना चाहिए। सुख भीतर छिपा है, उसे खोजने और साधना करने से ही प्राप्त किया जा सकता है। साधना कठिन हो सकती है, लेकिन यह सुख का मार्ग है। कठोर जीवन अपनाने से सुख की प्राप्ति संभव है। विद्यार्थियों को ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार भी मिलने चाहिए। जीवन में ईमानदारी आवश्यक है। झूठ से क्षणिक लाभ हो सकता है, लेकिन एक दिन झूठ का पर्दाफाश अवश्य होता है। गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी के सौवें दीक्षा दिवस के संदर्भ में आचार्य प्रवर ने कहा कि आज ही के दिन 99 वर्ष पूर्व पूज्य गुरुदेव तुलसी ने लाडनूं में अपने गुरु पूज्य कालूगणी से दीक्षा ग्रहण की थी। साधु बनकर संन्यास लेना सुख के मार्ग पर चलने जैसा है। गुरुदेव तुलसी ने असंख्य लोगों को दीक्षा देकर साधना का मार्ग दिखाया।
तारापुर नर्वणी मण्डल की ओर से भूपेन्द्रभाई पटेल व स्कूल के प्रिंसिपल परेशभाई पटेल ने अपनी भावना व्यक्त की। आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अहमदाबाद के अध्यक्ष अरविंद संचेती ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। अहमदाबाद समाज ने पूज्यवर की अभिवंदना में गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।