परार्थ के लिए पुरुषार्थ करने वाला होता है कार्यकर्त्ता : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

परार्थ के लिए पुरुषार्थ करने वाला होता है कार्यकर्त्ता : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी बोरसद से लगभग 12 किमी का विहार कर अपनी धवल सेना के साथ बोचासन स्थित स्वामीनारायण मंदिर परिसर में पधारे। बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बी.ए.पी.एस.) के उद्गमस्थली पर स्वामी नारायण संप्रदाय के संतों ने पूज्य प्रवर का अभिनंदन किया। संस्था परिसर में आयोजित कार्यक्रम में मंगल पाथेय प्रदान करते हुए परम पावन ने कहा कि हमारे जीवन में एक स्थायी तत्त्व है - आत्मा। आत्मा एक जन्म के बाद दूसरा जन्म ग्रहण करती रहती है, जब तक वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती।
आत्मा के साथ शरीर भी है और शरीर के साथ वाणी, मन और कल्पना करने की शक्ति भी होती है। हम मन से सोचते हैं, अप्रशस्त चिंतन से व्यक्ति दुःखी बन सकता है और प्रशस्त चिंतन से व्यक्ति सुखी बन सकता है। मन ही बंधन और मुक्ति का कारण भी बन सकता है। आदमी को अच्छा देखने, अच्छा सुनने, अच्छा सोचने अच्छा बोलने और अच्छा कार्य करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने जीवन में बुरे से बचाव और अच्छे से लगाव रखने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य के भीतर संस्कार भी होते हैं, जो अच्छे या बुरे हो सकते हैं। हम असद् संस्कारों को दूर करने का और अच्छे संस्कारों को पुष्ट करने का प्रयास करें।
आचार्यप्रवर ने जैन धर्म, तेरापंथ धर्मसंघ, तेरापंथ नामकरण और पूर्वाचायों के विषय में जानकारी देते हुए साध्वाचार के नियमों एवं सद्भावना, नैतिकता और नशा मुक्ति के लक्ष्य के साथ की जा रही यात्रा का वर्णन किया। उपस्थित कार्यकर्त्ताओं को प्रेरणा प्रदान करते हुए पूज्य प्रवर ने फ़रमाया कि कार्यकर्त्ता को अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में समभाव रखना चाहिए। 'कार्यकर्त्ता' को परिभाषित करते हुए पूज्यश्री ने कहा कि सुख-दुःख को गौण कर, परार्थ के लिए पुरुषार्थ करने वाला कार्यकर्त्ता होता है। कार्यकर्त्ता को आध्यात्मिक-धार्मिक कार्य, दूसरों का कल्याण और समर्पण की भावना से ओत-प्रोत होना चाहिए।
इस सन्दर्भ में पूज्य प्रवर ने निम्न दोहा सुनाया -
''सरवर, तरवर, संत जन चोथो बरसे मेह।
परमारथ के कारणै, च्यारूं धारी देह।।''
आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया था। अणुव्रत के नियमों को जैन या अजैन, कोई भी स्वीकार कर सकता है। व्यक्ति अच्छा इंसान बने, गुडमैन बने, क्रोध न करे, क्षमाशीलता का भाव रखे। आचार्य प्रवर ने आगे कहा - आज प्रमुख स्वामीजी के यहाँ आना हुआ है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी और प्रमुख स्वामीजी के साथ दिल्ली में कार्यक्रम हुआ था। आप सभी संतों से मिलना हुआ, महंतस्वामीजी के प्रति भी हमारी आध्यात्मिक मंगलकामना है। हम सभी धर्म का प्रचार करते रहें।
बी.ए.पी.एस. की ओर से वेदक स्वामीजी ने आचार्यश्री को एवं तेरापंथ समाज की ओर से आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति सूरत के अध्यक्ष संजय सुराणा आदि ने वेदक स्वामीजी को साहित्य उपहृत किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी एवं बी.ए.पी.एस. संस्था के स्वामीजी ने किया।