बंधन मुक्ति के लिए करें अनासक्ति की साधना : आचार्यश्री महाश्रमण
युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी, बड़ौदा से कच्छ की ओर चरण गतिमान करते हुए हाथीपुरा के उड़ान पब्लिक स्कूल में पधारे। अमृत देशना प्रदान करते हुए शांतिदूत ने फरमाया कि आदमी जीवन जीता है, और जीवन जीने के लिए पदार्थों का उपयोग करना पड़ता है। अनेक व्यक्तियों के साथ सामाजिक और पारिवारिक जीवन व्यतीत किया जाता है। जीवन जीने के लिए विभिन्न प्रवृत्तियों में संलग्न होना स्वाभाविक है। आचार्यश्री ने कहा कि इतने सारे कार्यों के बीच आत्मा को पवित्र बनाए रखने का एक उपाय है - अनासक्ति। जैसे कमल पानी में रहते हुए भी अलिप्त रहता है, वैसे ही संसार में रहते हुए, पारिवारिक जीवन जीते हुए और व्यवसाय करते हुए भी निर्लिप्त रहने का प्रयास करना चाहिए। पूज्य प्रवर ने फ़रमाया कि पदार्थ के प्रति आसक्ति, स्वाद के प्रति आसक्ति भव बंधन का कारण बन सकती है। बन्धन से मुक्त रहने के लिए अनासक्ति की साधना करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने फरमाया कि इच्छाएं आकाश के समान अनंत होती हैं, और 'बढ़िया से बढ़िया' की आकांक्षा ही आसक्ति का कारण बनती है। आसक्ति जितनी ज्यादा होती है तो आदमी पापाचरण भी कर लेता है। ज्यादा धन की लालसा हो तो आदमी चोरी, धोखा, बेइमानी कर लेता है। पापाचार आदमी को दुर्गति की ओर ले जाने वाले हो सकते हैं। हमें श्रमशील बनकर जीवन जीना चाहिए। अवांछनीय सुविधाओं की आकांक्षा से बचना चाहिए। तपस्या और सादगी की भावना को जीवन का अंग बनाएं। साधारण कपड़ों में भी महान व्यक्तित्व हो सकता है। गृहस्थों का जीवन सादगीपूर्ण होना चाहिए। सुख-सुविधाओं के पीछे न भागते हुए प्रभु की आराधना में मन लगाएं और दूसरों की आध्यात्मिक सेवा करने का संकल्प लें। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्य प्रवर ने श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ क्षेत्र में यात्रा करने की घोषणा करवाई। विद्यालय के प्रिंसिपल मनोज भाई ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।