मोक्ष की दिशा में बढ़ने के लिए परमार्थ का जीवन जीएं : आचार्यश्री महाश्रमण
युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा देते हुए फरमाया कि इंसान जीवन जीता है, परंतु यह विचार करना आवश्यक है कि जीवन क्यों जीना चाहिए और जीवन कैसा जीना चाहिए? जीवन, चेतन और अचेतन—अथवा शरीर और आत्मा—दो तत्वों का योग है। इन दोनों के संमिश्रण से ही जीवन संभव है। यदि केवल आत्मा है, तो मानव जीवन नहीं हो सकता और यदि केवल शरीर है, आत्मा के बिना, तो भी जीवन संभव नहीं।
आचार्यश्री ने कहा कि परमात्मा, मोक्ष में है, वहां शरीर नहीं होता, इसलिए वह मानव जीवन नहीं है। इसी प्रकार, यदि पार्थिव शरीर में आत्मा का अभाव हो, तो जीवन संभव नहीं। स्थूल शरीर और आत्मा का मिलन ही जीवन को परिभाषित करता है। उन्होंने समझाया कि इस शरीर को पूर्व जन्म के कर्मों के क्षय के लिए धारण किया गया है। जीवन का लक्ष्य होना चाहिए कि आत्मा को परमार्थ स्वरूप में परिणत किया जाए और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो।
आचार्यश्री ने कहा कि जीवन को इस प्रकार जीना चाहिए कि आत्मा मोक्ष के निकट पहुंच सके। मोक्ष की दिशा में बढ़ने के लिए जीवन में अनेक पदार्थों की आवश्यकता पड़ती है। गृहस्थ जीवन में धन अर्जन भी आवश्यक है, लेकिन इस प्रक्रिया में ईमानदारी और संयम का पालन होना चाहिए। धन जीवन के लिए है, परंतु जीवन धन के लिए नहीं होना चाहिए। धन कमाने में श्रावक धर्म का पालन करें। ईमानदारी से आजीविका अर्जित करें, अधिक हिंसा और पाप कर्मों से बचें। जीवन में सत्य, अहिंसा और पवित्रता का समावेश होना चाहिए। झूठ और चोरी से बचना चाहिए। मांसाहार से दूर रहें और अहिंसा को अधिकतम स्थान दें। गुस्सा और अहंकार से बचें, शांति और सादगी के साथ जीवन जीएं। नशीली वस्तुओं का सेवन न करें। अशोभनीय कार्यों से बचें और संयमपूर्ण जीवन अपनाएं। पूज्य प्रवर ने फ़रमाया - 'अभातेयुप के तत्वावधान में चलने वाली जैन संस्कार विधि के माध्यम से जीवन में सादगी और संस्कृति का समावेश करें।' जीवन में धर्म की साधना भी होनी चाहिए। जप, ध्यान, स्वाध्याय, और सामायिक जीवन का हिस्सा बनें। साधु-साध्वियों की सेवा से मोक्ष की ओर प्रगति हो सकती है। जीवन में उठने-बैठने और बोलने का तरीका भी आदर्श होना चाहिए। आचार्यश्री ने बाल पीढ़ी के उत्थान के लिए ज्ञानशालाओं की प्रशंसा की। आचार्य प्रवर ने कहा कि ज्ञानशालाएं बच्चों को धार्मिक संस्कार और ज्ञान प्रदान करने का उत्तम कार्य कर रही हैं। इन संस्कारों से बाल पीढ़ी का जीवन श्रेष्ठ बनता है।
मालवा क्षेत्र की जनता विशाल संख्या में श्रीचरणों में अपनी अर्ज के साथ उपस्थित थी। मंगल प्रवचन के उपरान्त मालवा सभा के सदस्यों ने गीत का संगान किया। तेरापंथी सभा, मालवा के अध्यक्ष संजय गांधी ने अपने उद्गार व्यक्त किये। बोरसद से प्रकाशचंद श्रीमाल, मंजुला श्रीमाल, वंदना श्रीमाल, स्थानवासी समाज के राजूभाई, स्वरा श्रीमाल, सरस्वती शिशु कुंज विद्यालय के चेयरमेन संजय पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मधु श्रीमाल, आनंद-बोरसद महिला मण्डल ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया।