प्रेक्षाध्यान चेतना के रुपान्तरण की प्रकिया है
मुनि जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में तथा प्रेक्षा फाउन्डेशन के तत्त्वावधान में प्रथम विश्व ध्यान दिवस तेरापंथ भवन में समारोह पूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर मुनि जिनेश कुमार जी ने कहा - जिस प्रकार शरीर में सिर का, वृक्ष में जड़ का मूल्य है उसी प्रकार आत्म-साधना में ध्यान का मूल्य है। मन, वचन, काया का स्थिरीकरण ही ध्यान है। निर्विषय मन ही ध्यान है। ध्यान का अर्थ है- जागरूकता। हम कोई प्रवृत्ति करे उसमें जागरूकता की परम अपेक्षा रहती है। जागरुकता हटी तो दुर्घटना घटी इसलिए हर प्रवृति में जागरुकता जरुरी है।
ध्यान वर्तमान में जीने की प्रेरणा देता है। ध्यान स्वभाव परिवर्तन की प्रकिया है। ध्यान से अनेक शक्तियां, लब्धियां प्राप्त होती है । ध्यान कर्म निर्जरा का कारण है । ध्यान से व्यक्ति समाधि को प्राप्त होता है। मुनिश्री ने आगे कहा- ध्यान की पृष्ठभूमि कायोत्सर्ग है। कायोत्सर्ग भेद विज्ञान की साधना है। भगवान महावीर ने ध्यान और तप के द्वारा केवल ज्ञान को प्राप्त किया। ध्यान तीर्थ है, शक्ति है तप है। प्रेक्षाध्यान आचार्य श्री तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञजी के उर्वरा मस्तिष्क की देन है। उन्होंने प्रेक्षाध्यान का आयाम देकर तनाव से ग्रस्त लोगों को एक प्रकार की संजीवनी दी है। मुनिश्री ने प्रेक्षाध्यान के प्रयोग कराए। मुनि कुणाल कुमार जी ने गीत का संगान किया। प्रेक्षा प्रशिक्षिका रश्मि सुराणा ने प्रेक्षाध्यान के विषय में विचार व्यक्त किए। प्रेक्षा प्रशिक्षिकाओं ने प्रेक्षागीत से कार्यक्रम का शुभारंभ किया । आभार वंदना डागा व संचालन सुनीता जैन ने किया।