दुर्जन नहीं, सज्जन बनने का करें प्रयास :आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

दुर्जन नहीं, सज्जन बनने का करें प्रयास :आचार्यश्री महाश्रमण

जिन शासन के सजग प्रहरी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ बगोदरा से विहार कर मीठापुर पधारे। अमृत देशना प्रदान करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि दुनिया में मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं—महात्मा, सदात्मा और दुरात्मा। महात्मा वे होते हैं जो घर-बार छोड़कर संत बन गए हैं। वे शुद्ध साधु होते हैं और पूजनीय-वंदनीय हैं। सदात्मा वे होते हैं जो गृहस्थ जीवन में सादगी और सदाचार के साधक होते हैं। वे सच्चे और सद्गुणी व्यक्ति होते हैं।दुरात्मा वे होते हैं जो बुरे कर्म जैसे हिंसा, चोरी, झूठ-कपट और नशा आदि करते हैं।सभी महात्मा बन जाएं, यह कठिन हो सकता है, लेकिन दुर्जन न बनें, सज्जन बनें। एक व्यक्ति किसी का गला काट दे तो वह केवल शारीरिक हानि पहुंचाने वाला शत्रु है, लेकिन दुरात्मा वह है जो अपनी आत्मा का नुकसान करता है। दुरात्मा के कृत्य उसे भव-भव में पीड़ा देते हैं। हमारी आत्मा यदि दुरात्मा बन जाए, तो वह सबसे अधिक हानि पहुंचा सकती है। हमारा भला या बुरा करने वाला कोई और नहीं, बल्कि हम स्वयं हैं। इसलिए हमें खुद को अच्छा बनाकर रखना चाहिए। प्राथमिक शाला के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार भी आने चाहिए। ज्ञान के साथ ध्यान भी हो, लेकिन अभिमान न हो। विनम्रता का भाव होना आवश्यक है। विद्या तभी शोभा देती है, जब उसके साथ विनय हो। भाषा में विवेक हो, और गुस्सा नियंत्रित हो।
विनयशील व्यक्ति को चार लाभ मिलते हैं:
1. आयु बढ़ती है।
2. विद्या, यश और कीर्ति प्राप्त होती है।
3. बल में वृद्धि होती है।
विद्यार्थी जीवन ज्ञान और चरित्र विकास का महत्वपूर्ण समय है। अध्यापकों को यह अवसर मिलता है कि वे अनेकों के जीवन को सुंदर और उन्नत बना सकें। गुरु वह होता है जो अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करता है। धर्मगुरु अपने शिष्यों का नैतिक और आध्यात्मिक विकास करते हैं। ज्ञान प्रदान करना गुरु का कर्तव्य है, और जीवन जीने की कला सिखाना उसका उद्देश्य। विद्यार्थियों को नशामुक्त रहना चाहिए। ज्ञानशाला में अच्छे संस्कार दिए जाते हैं, जो उन्हें चोरी और झूठ से बचने की शिक्षा देते हैं। ईमानदारी के साथ जीवन में सद्गुणों का विकास होता है। ध्यान का भी अभ्यास होना चाहिए। पूज्यवर ने विद्यार्थियों से प्रवचन से संदर्भित प्रश्न किए। विद्यालय की ओर से तुषार राठौड़ ने पूज्यवर के स्वागत में भावनाएं व्यक्त कीं। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।