भगवान पार्श्वनाथ ने किया अनगिनत आत्माओं का कल्याण : आचार्यश्री महाश्रमण
पौष कृष्ण दशमी, भगवान पार्श्वनाथ का जन्म कल्याणक दिवस। आर्हत् वाणी के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमणजी का बगोदरा के नवकार धाम तीर्थ परिसर में पदार्पण हुआ। पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए पूज्यवर ने कहा कि लोगस्स पाठ में 24 तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। इस अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र के तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ हुए। तीर्थंकर समान होते हैं, क्योंकि उनके चार घाति कर्म समाप्त हो जाते हैं। वे तीर्थ की स्थापना करते हैं, और अंततः उनके चार अघाति कर्म भी नष्ट हो जाते हैं। एक क्षेत्र में एक समय में एक ही तीर्थंकर होते हैं; दो तीर्थंकर एक साथ नहीं होते। लेकिन आचार्य अनेक हो सकते हैं।
पूज्यवर ने भगवान पार्श्वनाथ के जन्म की घटना का उल्लेख करते हुए फरमाया कि वाराणसी नगरी उस दिन धन्य हो गई जब कुमार पार्श्वनाथ ने जन्म लिया। राजकुमार पार्श्व ने गृहस्थ जीवन में भी धर्म क्रांति का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने एक तपस्वी द्वारा जलती लकड़ियों में नाग-नागिन के जोड़े को देखा, जो आग में जल रहे थे। उन्होंने इसे हिंसा करार दिया और नमस्कार महामंत्र सुनाकर उन्हें मुक्ति प्रदान की। ये नाग-नागिन अगले जन्म में धरणेन्द्र और पद्मावती के रूप में उत्पन्न हुए। नाग भगवान पार्श्वनाथ का प्रतीक भी है। आचार्यश्री ने कहा कि भगवान पार्श्वनाथ ने अनगिनत आत्माओं का कल्याण किया। उनके साधुओं का संपर्क भगवान महावीर के शिष्यों से हुआ, जिससे दोनों परंपराओं में समन्वय का मार्ग प्रशस्त हुआ।
भगवान पार्श्वनाथ को 'पुरुषादानीय' विशेषण से सुशोभित किया गया है। वे अत्यंत लोकप्रिय तीर्थंकर हैं। भारत भर में जितने मंदिर भगवान पार्श्वनाथ के हैं, उतने किसी अन्य तीर्थंकर के नहीं। उनकी वंदना के लिए अनेक स्तोत्र और मंत्र रचे गए हैं। कल्याण मंदिर स्तोत्र और उवसग्गहरं स्तोत्र विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। पूज्यवर ने गुरुदेव तुलसी द्वारा रचित गीत 'प्रभु पार्श्वदेव चरणों में' गीत का सुमधुर संगान किया गया और कहा कि हम भी वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ें और वीतराग बनने का प्रयास करें। आचार्यश्री ने नवकार धाम तीर्थ के आध्यात्मिक वातावरण की सराहना की और यहां निरंतर साधना चलने की मंगलकामना की। पूज्यवर के स्वागत में नवकार धाम की ओर से परागभाई ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। भुज ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।