23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के 2900वें जन्म कल्याणक दिवस पर
साध्वी अणिमाश्रीजी के सान्निध्य में टेगौर नगर स्थित सेठिया हाउस में भगवान पार्श्वनाथ के जन्म कल्याणक अवसर पर विशेष जप अनुष्ठान आयोजित किया गया। साध्वीश्री ने अपने उद्बोधन में कहा - तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का इस पंचम काल में विशेष प्रभाव है। संभवतः सबसे अधिक मंदिर भगवान पार्श्वनाथ के ही हैं। महाकरुणावान राजकुमार पार्श्व ने अपने अवधिज्ञान से नाग और नागिन को जलते हुए देखा। उन्होंने उस जलते नाग-नागिन को बाहर निकलवाया और उन्हें नमस्कार महामंत्र सुनाया। वही नाग-नागिन अपनी आयु पूर्ण कर धरणेंद्र और पद्मावती के रूप में जन्म लेते हैं और आज भी भगवान पार्श्वनाथ के प्रति कृतज्ञ हैं। ऐसा अनुभव किया गया है कि भगवान पार्श्वनाथ के भक्तों की वे मन से सहायता करते हैं। हम यही कामना करते हैं कि एक दिन हम भी जिनस्वरूप को प्राप्त कर जन्म-मरण की परंपरा का अंत करें। साध्वीश्री ने कहा कि आचार्य भद्रबाहु स्वामी द्वारा रचित 'उवसग्गहर स्तोत्र' भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति का एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली स्तोत्र है। आज भी हजारों लोग इसकी विशेष साधना और आराधना करते हैं। पौष शुक्ला दशमी से प्रारंभ होकर 27 दिन तक किया जाने वाला यह अनुष्ठान अत्यंत फलदायी हो सकता है। 27 दिनों तक प्रतिदिन एक माला बीजमंत्र का जप करें और 27 बार उवसग्गहर स्तोत्र का पाठ करें। जप के साथ यदि तप भी किया जाए, तो यह अनुष्ठान सौ गुणा अधिक प्रभावशाली हो जाता है। प्रत्येक भाई-बहन श्रद्धा और भक्ति के साथ नियमित और निस्वार्थ जप-साधना करें और वीतरागता की ओर अग्रसर बनें। साध्वी कर्णिकाश्रीजी, डॉ. साध्वी सुधाप्रभाजी, साध्वी समत्वशाजी और साध्वी मैत्रीप्रभाजी ने गीत प्रस्तुत कर वातावरण को पार्श्वमय बना दिया।