23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के 2900वें जन्म कल्याणक दिवस पर
तेरापंथ सभा भवन, सायन कोलीवाड़ा में 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के जन्म कल्याणक के अवसर पर आयोजित अनुष्ठान में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए साध्वी डॉ. मंगलप्रज्ञाजी ने कहा - जिसके द्वारा कल्याण, अर्थात शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य प्राप्त किया जाता है, उसे कल्याणक कहा जाता है। तीर्थंकरों के कल्याणक शारीरिक और आत्मिक शांति एवं शक्ति प्रदान करते हैं। भगवान पार्श्वनाथ एक शक्तिसंपन्न आत्मा के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्हें 'पुरुषादानीय' कहा गया है। बौद्ध धर्म प्रवर्तक बुद्ध भी पार्श्वनाथ परंपरा में दीक्षित हुए थे। तीर्थंकरों के कल्याणक से नरक के जीव भी आनंदित होते हैं। साध्वीश्री ने कहा- भगवान पार्श्वनाथ के जन्म कल्याणक दिवस पर विशिष्ट साधना करनी चाहिए। 'उवसग्गहर स्तोत्र' की साधना के संदर्भ में ऐतिहासिक तथ्य प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि यह स्तोत्र विशिष्ट घटनाओं के साथ प्रकट हुआ है। हठयोग प्रदीपिका आदि ग्रंथों में भी पार्श्वनाथ परंपरा का उल्लेख मिलता है।अनेक तपस्वी तीर्थंकरों के पाँच कल्याणकों को आधार मानकर तपस्या करते हैं। तपस्या, विजातीय तत्वों को दूर कर जीवन को शुद्ध बनाती है। भगवान पार्श्वनाथ ने कर्मों का क्षय कर सिद्धत्व को प्राप्त किया। उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा और आदर्श है। उन्होंने अपने ज्ञान से अनेक जीवों का उद्धार किया। हर तीर्थंकर के आराधक देव-देवियाँ होते हैं। भगवान पार्श्वनाथ के देव धरणेंद्र और देवी पद्मावती हैं। वाराणसी की ऐतिहासिक भूमि पर जन्मे राजा अश्वसेन और महारानी वामा देवी के पुत्र भगवान पार्श्वनाथ की आराधना से विघ्नों का विनाश संभव है। साध्वीश्री ने उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को विशिष्ट अनुष्ठान करवाया। साध्वी सुदर्शनप्रभाजी, साध्वी अतुलयशाजी, साध्वी राजुलप्रभाजी, साध्वी चैतन्यप्रभाजी और साध्वी शौर्यप्रभाजी ने सामूहिक रूप से 'पार्श्वनाथ नमो नम:' गीत प्रस्तुत किया। साध्वी डॉ. चैतन्यप्रभाजी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति में कहा कि भगवान पार्श्वनाथ साधना के शिखर पुरुष रहे हैं। उनका स्मरण बाधाओं का हरण करता है। कार्यक्रम का कुशल संचालन साध्वी अतुलयशाजी ने किया।