प्रेक्षाध्यान से तनाव मुक्ति संभव
योग दिवस के अवसर पर संबोधित करते हुए 'शासनश्री' साध्वी सुव्रतांजी ने कहा- योग साधना की विशिष्ट पद्धति है। इसका सम्बन्ध लगभग सभी धर्मों के साथ रहा है। इस विषय में अनेकों आचार्यों ने ग्रन्थों की रचना की है। महर्षि पतंजलि का 'योग दर्शन' योग का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। वर्तमान में योग के दो अंग प्रमुख हैं - आसन और प्राणायाम। ध्यान, धारणा, समाधि गौण हैं। प्रांजल प्रतिभा के धनी आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने अपने शरीर को प्रयोगशाला बना कर 13 वर्ष तक प्रयोग किये, फिर प्रेक्षाध्यान पद्धति का आविष्कार किया। 'प्रेक्षा' शब्द 'इक्ष' धातु से से बना है, जिसका अर्थ है- 'देखना'। आत्मा से आत्मा को देखना। आत्मा तक पहुंचने के लिए पहले शरीर के चैतन्य केन्द्रों को देखना।
आधुनिक मनुष्य तनाव की बीमारी से ग्रस्त है चाहे वकील है या डॉक्टर, टीचर है या प्रोफेसर नेता है या अभिनेता, व्यापारी है या उद्योगपति प्रत्येक व्यक्ति तनाव की बीमारी से पीड़ित है। प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों से तनाव से मुक्त होकर सुख, शान्ति आनन्दमय जिन्दगी जी सकता है। आयोजन का शुभारम्भ प्रेक्षागीत से साध्वी कार्तिकप्रभाजी एवं साध्वी चिन्तनप्रभाजी ने किया। उपासक एवं प्रेक्षा प्रशिक्षक विमल गुणेचा ने मंगल भावना का प्रयोग एवं प्रेक्षाध्यान की संक्षिप्त जानकारी दी और प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कराया।