समय को दें गले के हार सा महत्त्व : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

समय को दें गले के हार सा महत्त्व : आचार्यश्री महाश्रमण

ईसवी सन् 2025 का शुभारंभ। सौराष्ट्र की यात्रा में गतिमान नव निधि के प्रदाता आचार्य श्री महाश्रमणजी सायला से लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर डोलिया जैन तीर्थ में पधारे। अपने आराध्य से ईसवी सन् 2025 हेतु मंगल पाथेय और ऊर्जा ग्रहण करने भारत वर्ष के अनेकों क्षेत्रों के श्रावक-श्राविकाएं श्रीचरणों में उपस्थित हुए। नववर्ष के अवसर पर मंगलमूर्ति, मंगलप्रदाता आचार्य श्री महाश्रमणजी ने महत्ती कृपा करते हुए पूर्व निर्धारित समयानुसार, प्रात: 11:21 बजे वृहद मंगल पाठ की कृपा प्रदान की। मंगल देशना प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने फरमाया कि हमें समय का मूल्यांकन करना चाहिए, क्योंकि समय बहुत मूल्यवान है। समय आता है और चला जाता है। भविष्य वर्तमान में बदलता है और वर्तमान अतीत में समाहित हो जाता है।
आज नववर्ष 2025 का आगमन हो चुका है, और 2024 अतीत बन गया है। अतीत और आगत अनंत हैं, लेकिन वर्तमान क्षणिक है। अब हम 2025 में जी रहे हैं। वर्ष के पहले दिन का पहला सूर्योदय हो चुका है। हमें समय का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। समय अमूल्य धन है, जो सभी को समान रूप से मिलता है। इसे गले का हार बनाकर महत्व दें, तभी इसका उपयोग सार्थक हो सकता है।
हमारे मन, वचन और काय की प्रवृत्ति शुभ योग में हो। समय से पहले तैयारी करें और योजना बनाकर कार्य करें। चिंतनयुक्त निर्णय लें और उसे क्रियान्वित करें। भाग्य के भरोसे न बैठें। भाग्य ज्ञातव्य भी है और परिवर्तनशील भी। कर्मों का संक्रमण हो सकता है। हमें पुरुषार्थ पर अधिक ध्यान देना चाहिए। पुरुषार्थ करने पर यदि सफलता न भी मिले तो दु:खी न हों। पुरुषार्थ का फल आज नहीं तो कल अवश्य मिलता है। तत्वबोध कर लेना भी श्रेष्ठ पुरुषार्थ है। छः द्रव्यों और नव तत्वों का अध्ययन करें। जीवन में कठिनाई आए तो समता और शांति में रहें। प्रतिकूलता या अनुकूलता में समता का अभ्यास करें। समस्या आने पर उसका समाधान करने का प्रयास करें, उत्तेजना और आक्रोश में न आएं।
सन् 2025 में हमें पुरुषार्थमय जीवन जीना चाहिए। भगवान महावीर ने साधना के लिए अद्भुत पुरुषार्थ किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें केवलज्ञान, केवलदर्शन प्राप्त हुआ और मोक्ष की प्राप्ति हुई। आचार्य भिक्षु ने भी जीवन में कठोर पुरुषार्थ किया, जिसके फलस्वरूप तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना हुई। गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने कितनी ही यात्राएं कीं। उनका हर कदम पुरुषार्थ का प्रतीक था। सम्यक् पुरुषार्थ कभी न कभी अवश्य फलदायी होता है।
आचार्यश्री ने जनता को संकल्प दिलवाते हुए त्याग का अभ्यास कराया और प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी करवाया। उपस्थित जनता ने त्रिपदी वंदना के साथ आचार्यश्री के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की।मुख्य प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए हर दिन नया होता है। नववर्ष की शुरुआत नए संकल्पों के साथ करने से व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार आ सकता है। हमारे जीवन की डायरी में तीन पन्ने होते हैं: जन्म, जीवन और मृत्यु। जन्म और मृत्यु हमारे हाथ में नहीं हैं, लेकिन जीवन हमारे हाथ में है। यदि जीवन सही दिशा में चलेगा तो व्यक्ति अपने लक्ष्य तक पहुंच सकता है।
मुख्यमुनिश्री महावीर कुमार जी ने नववर्ष की शुभकामनाएं प्रदान करते हुए कहा कि कालचक्र अनंत काल से चल रहा है और चलता रहेगा। आत्मा का अस्तित्व भी अनंत काल से है। आत्मा को जन्म-मरण के चक्र से मुक्त कराने का प्रयास करें। जीवन में व्रतों की चेतना जगाएं और मानव जीवन को सफल बनाएं। साध्वीवर्याजी श्री संबुद्धयशा जी ने कहा कि गुरुदेव श्री तुलसी ने 'तेरापंथ प्रबोध' के अंत में लिखा था : "शुभ भविष्य है सामने।" आज भी सैकड़ों लोग शुभ भविष्य के लिए गुरु से प्रेरणा लेने उनके पास आए हैं। शुभ भविष्य का निर्माण शुभ संकल्पों से होता है। शुभ संकल्पों को अपनाने से आत्मा का कल्याण होता है।
में इस अवसर पर जैन विश्व भारती द्वारा नववर्ष के कैलेंडर का लोकार्पण किया गया। खान्देश सभा का कैलेंडर भी पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित किया गया। डोलिया जैन तीर्थ ट्रस्ट मंडल की ओर से अजयभाई शाह ने पूज्यवर के स्वागत में अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।