जीवन में सुविनीतता का होना है आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी कुचियादर में स्थित स्वामी विवेकानंद इंस्टिट्यूट परिसर में पधारे। मंगल देशना प्रदान करते हुए मंगल पुरुष ने फरमाया कि व्यक्ति कभी घमंड करता है, कभी आडम्बर करता है और कभी किसी चित्त वृत्ति से प्रभावित हो जाता है। अभिमान को मदिरा पान के समान बताया गया है। व्यक्ति को घमण्ड अथवा अभिमान से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने जीवन में सुविनीत बनने का प्रयास करे। जो आदमी गुस्सैल होता है, वाचाल होता है, अनावश्यक बोलता है, उसे तो कोई भी अपने यहां से निकाल सकता है और जो सुविनीत, विनम्रता रखने वाला है, उसे आदर और सम्मान भी प्राप्त हो सकता है। कुछ ज्ञान हो जाए और आदमी उसका घमण्ड कर ले तो वह बुरी बात हो सकती है। सामान्य आदमी के जीवन में अज्ञान का अंधकार होता भी है। यदि घमंड उग्र रूप ले ले, तो व्यक्ति और अधिक दुःखी हो जाता है। जो आत्मा अविनीत होती है, चाहे वह पशु, मानव या देवता हो, वह दुःखी रहती है। सुविनीत आत्मा सुखी रहती है। हमारे जीवन में सुविनीतता का होना आवश्यक है। विनय और अविनय का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आज स्वामी विवेकानंद से जुड़े विद्या संस्थान में आना हुआ है। विद्यार्थियों को ज्ञान के साथ विनय का भी संस्कार प्राप्त करना चाहिए। विद्या विनय से ही शोभा पाती है। जब विनय के साथ विवेक जुड़ता है, तो व्यक्ति को आनंद की प्राप्ति हो सकती है। जब तक भीतर में ज्ञानावरणीय कर्म का आवरण है,
तब तक ज्ञान के साथ अज्ञान भी बना रहता है। व्यक्ति के पास भले ही कुछ ज्ञान हो, परंतु वह सर्वज्ञ नहीं होता। जो सर्वज्ञ होते हैं, वे कभी घमंड नहीं करते। उनमें संपूर्ण संसार का ज्ञान होता है, फिर भी वे विनम्र रहते हैं। तब ही केवलज्ञान प्राप्त होता है, जब घमंड और अहंकार का त्याग हो। ज्ञान होने पर मौन रहना चाहिए और उसका प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। शक्ति होने पर भी क्षमाशीलता बनाए रखना चाहिए। जो त्याग और दान करता है, उसे नाम और प्रशंसा की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए। हमें अपने जीवन में घमंड से बचने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए। स्वामी विवेकानंद इंस्टिट्यूट के चेयरमेन मोहित कुमार और प्रिंसिपल नमिराज जैन ने आचार्यश्री के स्वागत में अपने उद्गार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।