सरलता और ऋजुता है जीवन का श्रृंगार : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सरलता और ऋजुता है जीवन का श्रृंगार : आचार्यश्री महाश्रमण

जिनशासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण चोटिला से लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर बोरियानस (मोटी मोरडी) में स्थित श्री महावीरपुरम् तीर्थ में पधारे। महावीर के प्रतिनिधि ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि धार्मिक साहित्य में निर्वाण, मोक्ष, और परिनिर्वाण की बातें आती हैं। प्रश्न है कि निर्वाण को कौन सा जीव प्राप्त कर सकता है? जन्म-मरण और आठों कर्मों से पूर्ण मुक्तता ही निर्वाण की अवस्था होती है। यह इतनी ऊंची अवस्था है कि वहां पहुंचने के बाद न शरीर रहता है, न वाणी, न मन, न राग-द्वेष। यह शुद्ध, बुद्ध, और विशुद्ध परमात्मा की अवस्था होती है। सिद्धांत की मान्यता के अनुसार, मनुष्य के सिवाय कोई भी जीव सीधे निर्वाण को प्राप्त नहीं कर सकता। मनुष्यों में भी असंज्ञी मनुष्य मोक्ष में नहीं जा सकते। संज्ञी मनुष्यों में भी वर्तमान समय में इस भरत क्षेत्र से कोई मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकता। संज्ञी मनुष्यों में भी केवल भव्य जीव ही मोक्ष जा सकते हैं। भले ही वे साधु या आचार्य बन जाएं, परंतु अभव्य जीव मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते। मोहनीय कर्म का क्षीण किए बिना केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त नहीं होते। बारहवें गुणस्थान में मोहनीय कर्म क्षीण होता है, उसके बाद तेरहवें गुणस्थान में केवलज्ञान और केवलदर्शन की प्राप्ति होती है।
महावीरपुरम् में सहज भगवान महावीर का स्मरण करते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि भगवान महावीर ने असाधारण साधना की थी और पूर्व भवों में भी निरंतर साधना की थी। उन्होंने घाती कर्मों का क्षय कर तीर्थंकर पद को प्राप्त किया। अपनी देशना के माध्यम से जनकल्याण किया और अंततः पावापुरी में निर्वाण को प्राप्त किया। उच्च कोटि की धर्म साधना करने वाले, शुद्ध चित्त व शुद्ध भावधारा वाले व्यक्ति ही निर्वाण को प्राप्त कर सकते हैं। जिनका हृदय सरल और शुद्ध होता है, उनके भीतर धर्म ठहरता है। शुद्धता और ऋजुता का गहरा संबंध है। प्रायश्चित लेने वाले में ऋजुता होनी चाहिए, और प्रायश्चित देने वाले में निष्पक्षता और गंभीरता का भाव होना चाहिए। ऋजुता से विशुद्धि प्राप्त होती है। हमारे जीवन में आर्जव का भाव होना चाहिए। ऋजुता जीवन की संपत्ति है। वह व्यक्ति धन्य है, जो झूठ और कपट से बचकर साधना करता है। सत्य एक महान तप है। जिसके हृदय में सत्य होता है, वहां प्रभु का निवास होता है। सरलता जीवन का श्रृंगार है। सच्चाई और सरलता का अद्वितीय संगम है। दिगंबर हो या श्वेतांबर, कई सिद्धांत भले अलग हों, लेकिन महावीर को सभी मानते हैं। वे चारों संघों के परम पिता हैं। हमारी यात्रा साधुता से सिद्धता की ओर है।पूज्यवर के स्वागत में श्री महावीरपुरम तीर्थ के ट्रस्टी ने अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।