वृद्धावस्था में भी रहे समता और समाधि : आचार्यश्री महाश्रमण
क्षमामूर्ति आचार्यश्री महाश्रमणजी मघरीरवाड़ा स्थित स्थित युग शक्ति वृद्धाश्रम में पधारे। मंगल प्रेरणा और पाथेय प्रदान करते हुए युगदृष्टा ने फरमाया कि दस धर्मों में उत्तम क्षमा धर्म एक महान धर्म है। सहन करना, सहिष्णुता रखना, मन, वचन और काया के प्रति प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करना और समता बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। परिवार में, व्यापार में, समाज में और व्यवहार में सहिष्णुता हो, तो शांति बनी रह सकती है। सहिष्णुता के अभाव में व्यक्ति आर्त्त ध्यान में जा सकता है। आचार्यश्री ने चार आश्रमों के संदर्भ में कहा कि 75 वर्ष के बाद का समय संन्यास आश्रम का माना गया है। इस समय व्यक्ति को निवृत्ति और धार्मिक साधना की ओर बढ़ना चाहिए। वृद्धाश्रम में भी वृद्धजन संन्यास की साधना करें। स्वाध्याय, ध्यान, जप, अनुप्रेक्षा आदि धर्म प्रवृत्तियों में मन लगाएं। संसार से निवृत्ति का भाव रखें।
मानव जीवन को दुर्लभ बताया गया है, जो हमें प्राप्त हुआ है। वृद्धत्व लंबी आयु से मिलता है, और यह भाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होता है। इस अवस्था में भी नवकार मंत्र का जप निरंतर चलते रहना चाहिए। वृद्धावस्था में धर्म की प्रवृत्ति करने से आत्मा का कल्याण संभव है। आत्मा की ओर अधिक ध्यान केंद्रित करें। लेटे-लेटे भी "णमो सिद्धाणं" का जाप करते रहें। यह भावना रखें कि मुझे सिद्धि प्राप्त हो, जन्म-मरण से मुक्ति मिले और मैं निरामय बनूं। यदि शुद्धता और वीतरागता आ जाए, तो सिद्धि अवश्य मिलेगी। वृद्धावस्था में समता का भाव और समाधि बनी रहे। छोटे-छोटे त्याग करते रहें और अधिक से अधिक समय साधना में लगाएं। आचार्यश्री ने कहा कि अपनी समता स्वयं को शांति प्रदान करने वाली है। यदि वृद्ध व्यक्ति की बात कोई नहीं सुनता, तो इसे लेकर दु:खी न हों। अपने सुख में रहना सीखें। यदि कोई आपकी बात मानता है, तो अच्छा है, और यदि नहीं मानता, तो भी कोई समस्या नहीं है। वृद्धाश्रम धर्म का आश्रम होता है। वृद्धजनों में शांति और समाधि बनी रहे। मंगल प्रवचन के उपरान्त वृद्धाश्रम से संबंधित अल्पेशभाई मोदी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।