आवेश युक्त गुस्सा है निंदनीय और त्याज्य : आचार्यश्री महाश्रमण
जिनशासन के सजग प्रहरी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ सौराष्ट्र क्षेत्र के वस्तड़ी ग्राम के प्राथमिक शाला में पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए युग प्रणेता ने फरमाया कि मनुष्य के जीवन में अनेक प्रकार के भाव उत्पन्न होते हैं। कभी वह शांति में रहता है, तो कभी गुस्से में भी आ जाता है। गुस्सा एक दुर्वृत्ति है। गुस्से के स्तर में अंतर हो सकता है। कई बार हित के लिए कठोर शब्दों का उपयोग किया जा सकता है। चेहरे के भाव भी बदल सकते हैं। यह एक सात्विक वृत्ति का गुस्सा हो सकता है।
कभी-कभी, जब कोई गलत बोल देता है, तो मन में गुस्सा आ सकता है, परंतु यदि उसे शब्दों और चेहरे पर प्रकट नहीं किया जाता, तो यह दूसरे प्रकार का गुस्सा है। तीसरे प्रकार का गुस्सा वह होता है, जब किसी ने अपशब्द बोले और सामने वाला भी गुस्से में लाल-पीला हो जाता है। वह हाथ में कुछ हो तो उसे फेंकने लगता है और अपशब्द बोलने लगता है। यह गुस्सा अत्यंत नुकसानदायक हो सकता है।
जिस गुस्से में आवेश आता है, वह गुस्सा न केवल सर्वथा निंदनीय और त्याज्य है, बल्कि व्यवहार में भी अस्वीकार्य है। दूसरे प्रकार के गुस्से में यदि गुस्सा आ गया तो यह भी एक दुर्बलता है। पहले प्रकार के गुस्से में यदि शिक्षक बच्चों को डांटता है, तो उसका उद्देश्य उन्हें सुधारना होता है, न कि पीड़ा देना। गुस्सा मनुष्य का शत्रु होता है। साधु तो गुस्से से मुक्त और महान प्रसन्नता वाले होते हैं। संत वह होता है, जो शांत रहता है। अनावश्यक झगड़े से बचना चाहिए। किसी को बदनाम करने की भावना नहीं रखनी चाहिए। उचित स्थान और समय पर गलती बताई जा सकती है ताकि उसकी पुनरावृत्ति न हो।
विद्यालय एक महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, जहां ज्ञान के साथ-साथ अच्छे संस्कारों का भी आदान-प्रदान होता है। शिक्षक का दायित्व है कि वह बच्चों को अच्छा ज्ञान दे और उनकी सही देखभाल करे। बाल पीढ़ी का उन्नयन शिक्षक की जिम्मेदारी है। शिक्षक मिट्टी को घड़े का आकार देने वाले कुम्हार की तरह होता है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने समुपस्थित विद्यार्थियों को प्रश्नों के माध्यम से जीवन में अच्छा काम करने की प्रेरणा प्रदान की। प्राथमिकशाला के शिक्षक नरेशभाई सोलंकी, ग्राम पंचायत सरपंच घनश्याम सिंह गोहिल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। बैंगलोर ज्ञानशाला की कन्याओं और किशोरों ने पृथक्-पृथक् गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।