आत्मा कल्याण के लिए हो अहिंसा का आचरण : आचार्यश्री महाश्रमण
जिन शासन के उज्ज्वल नक्षत्र आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 12 किमी का विहार कर सौराष्ट्र के अर्जुननगर स्थित धांग्रा परिवार के निवास स्थान में पधारे।आध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान कराते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि अहिंसा धर्म होता है। किसी भी जीव को अपनी ओर से कष्ट न पहुंचाना और न ही किसी प्रकार की हिंसा का प्रयास करना। यह भावना न केवल उत्तम है बल्कि आत्म-कल्याण के लिए अनिवार्य भी है। आदमी के पास ज्ञान है, और उसे इस ज्ञान का उपयोग अहिंसा के पथ पर चलने के लिए करना चाहिए। ज्ञान का सार आचरण में निहित है। अहिंसा का आचरण करना, इसके सिद्धांत को समझना और इसे अपने जीवन में आत्मसात करना, व्यक्ति के आत्म-उत्थान में सहायक होता है।
आचार्यश्री ने बताया कि व्यक्ति अक्सर लोभ या आक्रोश के वशीभूत होकर हिंसा करता है। अतः लोभ और क्रोध पर नियंत्रण आवश्यक है। गलत तरीकों से धन अर्जित करने या धन के प्रति अत्यधिक मोह से बचना चाहिए। पूज्यवर ने स्पष्ट किया कि यहाँ से धन साथ नहीं जाता, केवल धर्म और पुण्य-पाप के कर्म ही व्यक्ति के साथ जाते हैं। आचार्यश्री ने बुजुर्गों को साधु-संतों की संगति में समय बिताने और आत्मा के कल्याण के लिए प्रयास करने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि आत्मा और शरीर भिन्न हैं, और आत्मा अपने कर्मों के अनुसार अलग-अलग गतियों में विचरण करती रहती है। अतः व्यक्ति को अपने कर्मों का विवेकपूर्ण चयन करना चाहिए।
पूज्यवर ने कहा - बिना कारण किसी भी प्राणी को कष्ट न दें। गुस्से में किसी को गालियां देना या नुकसान पहुंचाना हिंसा के समान है। गुस्सा भी एक प्रकार का नशा है। उन्होंने शांति और संतोष के साथ जीवन जीने की प्रेरणा दी और कहा कि पूर्वकृत पुण्य के परिणामस्वरूप हमें सुख-सुविधा मिलती है, लेकिन हमें भविष्य के लिए भी कुछ करें ताकि आत्मा निर्मल बनी रहे। अर्जुननगर की ओर से दिनेशभाई धांग्रा और नेहा धांग्रा ने आचार्यश्री का स्वागत करते हुए अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।