त्याग और संयम से जीवन बन सकता है सुखमय : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

त्याग और संयम से जीवन बन सकता है सुखमय : आचार्यश्री महाश्रमण

तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी अजापर के नवकार इंटरप्राइजेज परिसर में पधारे। अमृत देशना प्रदान करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि मनुष्य संसार में जीवन व्यतीत करता है, लेकिन प्रश्न यह है कि सुखी जीवन कैसे जिया जाए? जीवन को आनंदमय बनाने के लिए शास्त्रों में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। पहली बात यह है कि व्यक्ति को आत्मसंयम के साथ जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिए और सुकुमारता का त्याग करना चाहिए। कठोरता से जीवन जीने की मनोवृत्ति विकसित करनी चाहिए। कम संसाधनों में भी जीवनयापन करने की क्षमता होनी चाहिए। आवश्यकता अनुसार भौतिक सुविधाओं का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन कठिनाइयों में भी मनोबल बनाए रखना आवश्यक है। गर्मी हो या सर्दी, थोड़ी असुविधा सहन करने का प्रयास करना चाहिए। यदि हम किसी परिस्थिति से डरेंगे या भागेंगे, तो आगे बढ़ना कठिन हो जाएगा। इसलिए डटकर खड़े रहना चाहिए और आत्मसंयम से जीवन जीना चाहिए।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इच्छाओं का अतिक्रमण किया जाए। अत्यधिक लालसा और इच्छाएँ व्यक्ति को दुखी कर सकती हैं। यदि कामनाओं पर नियंत्रण रखा जाए, तो दु:ख भी स्वतः कम हो जाएगा। तीसरी बात यह है कि द्वेष का त्याग किया जाए। किसी से ईर्ष्या न करें और दूसरों की सफलता को देखकर दुःखी न हों। यदि कोई प्रगति कर रहा है, तो हमें उसका प्रमोद भाव से स्वागत करना चाहिए। दूसरों को सुखी देखकर दुःखी नहीं होना चाहिए और दूसरों को दुःखी देखकर सुखी नहीं होना चाहिए। हमें भी अपने विकास के लिए प्रयास करना चाहिए।
चौथी बात यह है कि राग का त्याग किया जाए। राग छोड़ना आसान नहीं होता, क्योंकि दसवें गुणस्थान तक भी लोभ और राग बना रहता है। द्वेष पहले समाप्त हो सकता है, लेकिन राग का नाश धीरे-धीरे होता है। राग दो प्रकार के हो सकते हैं—सात्विक राग और असात्विक राग। गौतम स्वामी का भगवान महावीर के प्रति सात्विक राग था, जो गुरु-शिष्य संबंध में स्वीकार्य है। यह राग हानिकारक नहीं होता, लेकिन भोग-विलास और सांसारिक आकर्षण से जुड़ा असात्विक राग त्यागने योग्य होता है। परिग्रह और विषयासक्ति से उत्पन्न राग अप्रशस्त होता है और उसे दूर करने का अधिक प्रयास करना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है— राग से बड़ा कोई दुःख नहीं और त्याग से बड़ा कोई सुख नहीं। गृहस्थों को अधिक सुख-सुविधाओं में उलझने के बजाय थोड़ा कष्ट सहने की आदत डालनी चाहिए। जीवन सादगीपूर्ण होना चाहिए। जीवन में त्याग और संयम का महत्व है, और इन्हीं गुणों के माध्यम से सुखी जीवन जिया जा सकता है।
पूज्यवर के स्वागत में गुजरात की पूर्व विधानसभा स्पीकर नीमा बेन ने अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। पूर्व राज्यमंत्री बासन भाई ने भी अपनी अभिव्यक्ति देते हुए पूज्यवर से आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रवास स्थल नवकार इंटरप्राइजेज से जुड़े हुए पवन कोठारी, जयसिंह बोथरा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। नन्हें बालक- बालिका निर्जरा और राहुल बोथरा ने अपनी प्रस्तुति दी। मंजु बोथरा व किशोर धारीवाल ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। नवकार इंटरप्राइजेज परिवार की महिलाओं ने स्वागत गीत का संगान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।