वर्तमान युग में मर्यादा की उपयोगिता

वर्तमान युग में मर्यादा की उपयोगिता

तेरापंथ धर्मसंघ मर्यादित और संगठित धर्मसंघ है। इसकी अखंडता का आधार है—चतुर्विध तीर्थ का सहज, समर्पित एकत्व। यह संगठन की विरासत हमें जन्मघूंटी के साथ प्राप्त हुई है। आचार्यश्री भिक्षु और श्रीमद् जयाचार्य ने संगठन और मर्यादा की ऐसी अवधारणा प्रस्तुत की, जो मार्क्स की कल्पना से भी श्रेष्ठ है।
तेरापंथी कौन?
सामान्यतः उत्तर होगा—जो तेरापंथ की सम्यक्त्व दीक्षा स्वीकार करता है, वही तेरापंथी है। परंतु मेरा मानना है कि तेरापंथी वह है, जिसमें अहंकार और ममकार का विसर्जन हो। जो हर स्थिति में कहे—'जो कुछ है, वह प्रभु का है, मेरा कुछ नहीं।' तेरापंथी वह है, जो संघ और आचार्य द्वारा प्रस्तुत वैचारिक क्रांति को आत्मसात करता है।
मैंने विभिन्न जैन परंपराओं के व्यक्तियों से पूछा—'क्या आप भगवान को मानते हैं?' उत्तर मिला—'हाँ, मानते हैं।' अगला प्रश्न—'क्या आप भगवान की वाणी को भी स्वीकारते हैं?' उत्तर फिर 'हाँ' में मिला। तब मैंने पूछा—'फिर आप उनके पंथ को क्यों नहीं मानते?' जब वे असमंजस में पड़ गए, तब मैंने स्पष्ट किया—भगवान को मानते हैं, भगवान की वाणी को मानते हैं, तो फिर तेरापंथ से अलग कैसे हो सकते हैं? 'तेरा' का अर्थ है—भगवान! यह आपका पंथ है। आचार्य भिक्षु ने इसी भावना के साथ कहा—'हे प्रभो! यह तेरापंथ।' इस पंथ में वही चलता है, जो सर्वात्मना समर्पण करता है।
मर्यादा का महत्व
हर समाज, हर देश, हर संस्था की सफलता का मूल आधार मर्यादा है। मर्यादा ही चेतना के उर्ध्वारोहण की सीढ़ी है। तेरापंथ धर्मसंघ में सबसे प्रमुख मर्यादा है—सभी साधु-साध्वियाँ एक आचार्य की आज्ञा में रहें। यह हमारी मूल मर्यादा है, जिससे संघ की स्थिरता और संगठन बना रहता है। आचार्य भिक्षु ने ऐसी मर्यादाओं की संरचना कर दी, जिससे हर विपरीत परिस्थिति पर रोक लग गई। कोई विचार, कोई प्रलोभन, कोई भटकाव संघ को विचलित नहीं कर सकता।
मर्यादा महोत्सव : जीवन का उत्सव
हम प्रतिवर्ष मर्यादा महोत्सव मनाते हैं। लेकिन यह महोत्सव केवल रस्म नहीं, बल्कि मर्यादाओं को जीने का संकल्प है। महावीर और भिक्षु दोनों क्रांतिकारी थे। उन्होंने समय के रूढ़िगत शिथिलाचार पर प्रहार कर समाज को दिशा दी। तेरापंथ इसी क्रांति की निष्पत्ति है—अंधकार में प्रकाश। आचार्य भिक्षु मर्यादा के पुरोधा थे, उन्होंने अनुशासन की ऐसी नींव रखी, जिससे तेरापंथ कालजयी बन गया।
मर्यादा : आत्मसंयम और अनुशासन
तेरापंथी श्रावक-श्राविकाएँ एवं साधु-साध्वियाँ जीवन के हर पहलू में मर्यादा का पालन करते हैं। सोने, खाने, वस्त्र, पादुका, उपकरण—हर चीज़ की मर्यादा है। एक साध्वी, साधु या अकेले पुरुष से वार्तालाप न करे—यह मर्यादा अति महत्वपूर्ण है। बिना आज्ञा सेवा न करवाना, गोचरी-पानी के लिए नहीं जाना—ये मर्यादाएँ असंयम पर अंकुश लगाती हैं। यह अनुशासनहीनता के इस युग में अत्यंत अनिवार्य है।
मर्यादा : जीवन की सुरक्षा
सूर्य जब तक मर्यादा में है, सागर जब तक मर्यादा में है, तब तक सृष्टि संतुलित रहती है। यदि सूर्य अपनी सीमा लांघे, तो समस्त सृष्टि जल जाए। यदि सागर अपनी मर्यादा तोड़े, तो समूचे राष्ट्र डूब जाएँ। प्रकृति और पुरुष दोनों ही मर्यादित रहते हैं, तभी सृजन और शांति संभव होती है।
मर्यादा स्वयं एक सुरक्षा कवच है। इसमें रहने वाला व्यक्ति सुरक्षित रहता है। यदि हम मर्यादा का पालन करें, तो संकट हमसे स्वतः टल जाएगा। मर्यादा में रहते हुए ही हम कह सकते हैं—हमारा भविष्य उज्ज्वल है, हमारा पंथ गौरवशाली है, और हमारा जीवन अनुशासित एवं सुरक्षित है। मर्यादा में रहकर ही हम कह सकेंगे शुभभविष्य है सामने।