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गीत
विघ्नविनायक मंगलदायक स्वामीजी का जय नारा।
जैन-जगत की जान, शान है तेरापथ सबसे प्यारा ।।
इसके सिंचन में हैं भिक्षु स्वामी के श्रम की बूंदें।
हाथ जोड़कर, शीष नवांकर, श्रद्धा से आंखें मूंदें ।
महावीर का पथ-दिखलाता, बाबा तू ही रखवाला।
सुप्त कुंडली जागृत करदे, भरदे पौरुष की ज्वाला।।
मर्यादा का मूल्य बढ़ाया, जयाचार्य है जयकारी।
प्रबल शक्तिधर कवच बनाया, बाबे का ही अवतारी।।
कहता मोछब सुनो सभी जन, मैं जब-जब भी आता हूँ।
विनय समर्पण रीति-नीति भावों को और दृढ़ाता हूँ।।
जिन शासन का विनय मूल है, उसका ही सब खेला है।
मर्यादोत्सव तेरापथ का, महाकुम्भ का मेला है।।
मठों मंदिरों का नहीं झगडा, ना झगड़ा कोई चेलों का।
पुस्तक-पन्ने-पदवी का नहीं, झगड़ा ना कोई महलों का।।
चेले देदू-गुरु बना दू-क्षेत्रों का पट्टा।
उपाध्याय पद-और कोई पदवी-अरे कुछ तो लेलो।।
एक गुरु की आण है और एक विधान है।
संघ- संघपति के चरणों में, आजीवन कुर्बान है।।
किसको कहां करना है मोछब चौमासा या यात्राएं।
उसी दिशा में चरण बढ़ाएं, जहां गुरुजी फरमाए।।
गुरु की दृष्टि सुख की सृष्टि और किसी से क्या लेना।
गण का, गुरु का, निज आत्मा का हमको आराधक होना।।
जिस पन्ने पर लिखा भिक्षु ने क्या कागज का टुकड़ा है?
टुकड़ा नहीं कहना उसको हरता जन्मों का दुखड़ा है।।
तेरापथ है महागीत तो अनुशासन ही मुखड़ा है।
अनुशासित होने पर भोला रहता उखड़ा-उखड़ा है।।
झुकना जिसको नहीं सुहाता विनम्रता नहीं आती है।
आभ्यन्तर चक्षु नहीं उसके पूरा खर का साथी है।।
भिक्षु भारमल रायचंद जय मघवा माणक श्री डालगणी को।
कालु तुलसी गुरुवर को-खमाघणी।।
जय महाप्रज्ञ गुरुवर को-खमाघणी।
इस शासन के पुण्य प्रतापी जब्बर-बब्बर राणा है।।
वर्तमान में चार तीर्थ का महाश्रमण महाराणा है।
देख इशारा महाश्रमण का हम जम्मू भी जाएंगे।।
पास पड़ोसी के कश्मीरी को भी ध्यान कराएंगे।
माना तुम हो सिंधु बड़े हम तो केवल इक बिंदु हैं।।
किंतु बिंदु के हृदय कटोरे में भी बैठा सिंधु है।
हम शासन के सुभट सज्ज हैं, धर्मध्वज हाथों लेकर।।
हर सपना पूरा कर देंगें, देकर तो देखो गुरुवर।।
दुनिया दीवानी है, महाश्रमण भगवान।
तेरी पुनवानी है, मिलें हमें वरदान।।
आत्मवान, ज्ञानवान, वेदवान, धर्मवान, ब्रह्मवान हों शासन में।
विनयवान बनकर रहना हमको तेरे अनुशासन में।
इंगित पहचान, बन जाए गतिमान और पाएं अविचल स्थान।।
सबसे पहले इस भूमि पर रायऋषि जी आए।
तीन बार आकर मुनि डालिम कच्छीपूज कहाए।।
दीक्षा मोत्सव देकर तुलसी ने करुणा बरसाई।
महाश्रमण ने सबसे ज्यादा अब तक कृपा कराई।।
भुज भाग्योदय, कच्छ की यह लय, अब चौमासा फरमान।।
लय– राम जागो चीनी भागो