आज्ञा, मर्यादा, आचार्य, गण और धर्म के प्रति समर्पण है आवश्यक : आचार्य श्री महाश्रमण
त्रिदिवसीय मर्यादा महोत्सव का दूसरा दिन। आचार्य भिक्षु एवं मर्यादा पुरुषोत्तम जयाचार्य के परम्पर-पट्टधर, आचार्यश्री महाश्रमणजी ने संपूर्ण धर्मसंघ को मर्यादाओं के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आज्ञा, मर्यादा, आचार्य, गण और धर्म— इन पाँच तत्वों में ही मर्यादा महोत्सव, साधुता और संगठन की सफलता समाहित है।
आज्ञा देने में समर्थ कौन?
आज्ञा के प्रति समर्पण का भाव सफलता का महत्वपूर्ण सूत्र है। आज्ञा देने वाला भी कोई समर्थ व्यक्ति होना चाहिए, जिसकी आज्ञा से पालक का हित हो सके। जिनेश्वर भगवान की आज्ञा सर्वोपरि होती है। वर्तमान में तीर्थंकर भगवान साक्षात रूप से नहीं हैं, लेकिन उनकी आज्ञा जिनवाणी के रूप में शास्त्रों-आगमों में संग्रहीत है। हमारी परंपरा में 32 आगम प्रमाणस्वरूप प्रतिष्ठित हैं, जिनमें भी 11 अंग स्वतः प्रमाण हैं। आगम हमारे श्रद्धा और सम्मान के केंद्र हैं। हमें करणीय और अकरणीय का विचार करना चाहिए। वर्तमान में तीर्थंकर तो नहीं हैं, लेकिन उनके प्रतिनिधि के रूप में आचार्य प्रतिष्ठित हैं। हमारे धर्मसंघ में आचार्य की आज्ञा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। साधु-साध्वियों को ऐसा त्याग भी दिलाया जाता है कि ‘आचार्य की आज्ञा को लांघने का त्याग है।’
जब तक आचार्य विराजमान हैं, तब तक युवाचार्य को भी उनकी आज्ञा का पालन करना होता है। श्रीमद जयाचार्य ने 'गणपति सिखावण' में युवाचार्य को आचार्य की आज्ञा पालन और सेवा करने की शिक्षा दी है। युवाचार्य को आचार्य की दूसरी देह माना जाता है। आचार्य युवाचार्य को उपालंभ भी दे सकते हैं। इससे युवाचार्य को उलाहना देने का प्रशिक्षण भी प्राप्त हो सकता है और अन्य को जागरूक रहने का अवसर मिल सकता है।
पूज्य प्रवर ने प्रेरणा देते हुए कहा -
काच कठीर अधीर नर, कस्या न उपजै प्रेम।
कसणी तो धीरा सहै, के हीरा के हेम।।
आचार्य की कड़ी दृष्टि को भी सहन करने का प्रयास करना चाहिए। सहन करने में हीरे के समान कठोर बनना चाहिए न कि कांच की भांति अधीर। गुरुओं की कठोर वाणी को सहन करने वाला ऊंचाई को प्राप्त कर सकता है। जो मणि निकष पर खरे नहीं उतरते हैं उन्हें राजा के मुकुट में स्थान नहीं मिलता। अपने अग्रणी की आज्ञा पर भी ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। अग्रणी साधु-साध्वी आचार्य के प्रतिनिधि होते हैं, इसलिए उनकी आज्ञा आदि का पालन करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने आचार्य श्री रायचंद जी एवं युवाचार्यश्री जीतमलजी के बीदासर-बीकानेर चातुर्मास के प्रसंग का वर्णन करते हुए प्रेरणा दी - आचार्य की आज्ञा में गली निकलना स्वीकार नहीं है। यदि युवाचार्य आचार्य की आज्ञा का अक्षरशः पालन करते हैं तो संत शब्दशः तो पालन करेंगे। आज्ञा की आराधना सफलता का एक सूत्र है।
मेरं सम्मं पालइस्सामि
मर्यादा के प्रति निष्ठा, जागरूकता अत्यंत आवश्यक है। यदि हम मर्यादा का सम्मान करेंगे तो मर्यादा भी हमारा सम्मान करेगी। सामान्यतया आचार्य अपना उत्तराधिकारी निर्णीत करते हैं, उत्तराधिकारी के बाद का उत्तराधिकारी नहीं बनाते। आगे का चिंतन दे सकते हैं पर आधिकारिक कार्य तो वर्तमान आचार्य ही कर सकते हैं। हमारे धर्मसंघ की अपनी मर्यादाएं हैं, जिनका सभी को सम्यक पालन करना चाहिए।
आयरियं सम्मं आराहइस्सामि
आचार्य की आज्ञा की सम्यक आराधना तो करनी ही होती है, आचार्य के इंगित, दृष्टि और अभिप्राय को भी समझने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य के प्रति विनयपूर्ण व्यवहार रखना चाहिए। साधु अप्रमत रहकर आचार्य की आराधना का प्रयास करे। आचार्य प्रवर ने आचार्य भिक्षु और मुनि श्री खेतसीजी के उदाहरण से उनकी सेवा निष्ठा का वर्णन किया।
गणं सम्मं अनुगमिस्सामि
गण की आराधना, सेवा और अनुगमन करना आवश्यक है। संघ के विपरीत शब्द भी नहीं आने चाहिए कोई भी परिस्थिति आ जाए, आवेश में आकर गण को नहीं छोड़ना चाहिए। जीना और मरना दोनों संघ में ही हो। आचार या सिद्धांत की बात हो तो आचार्य को निवेदन करना चाहिए, पर संघ छोड़ने की बात नहीं करनी चाहिए। हमारा यह संकल्प रहे - 'छूटे तो यह तन छूटे, शासन संबंध न टूटे।'
धम्मं न कयावि जहिस्सामि
धर्म कभी नहीं छोड़ना चाहिए। अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म की साधना में दृढ़ रहना आवश्यक है। अर्हन्नक जैसी दृढ़ता हम चारित्रात्माएं भी मन में रखें। संघ से भी बड़ा धर्म है। 'प्राण जाए पर साधना का प्रण न जाए'— इस भावना के साथ धर्म के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए। साधुता मेरा धर्म है, और यह धर्म नहीं छूटना चाहिए।
आचार्य महाप्रज्ञजी का पदारोहण दिवस
पूज्यवर ने आगे फ़रमाया कि आज माघ शुक्ला षष्ठी है, जो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का पदारोहण दिवस है। गुरुदेव तुलसी ने दिल्ली में इस दिन उनका पदाभिषेक किया था। तेरापंथ का आचार्य बनना विशेष सौभाग्य की बात होती है। ऐसा अवसर इस धर्मसंघ में एक ही बार आया कि अपने गुरु और आचार्य के रहते हुए ही किसी युवाचार्य ने आचार्य पद प्राप्त किया हो। उनका आयुष्य और संयम पर्याय लंबा रहा। मुझे 13 वर्षों तक आचार्य महाप्रज्ञजी के चरणों में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनके निर्देशन में आगम संपादन कार्य में योगदान देने का अवसर मिला। उन्होंने प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान का आविष्कार किया। उनका संयम जीवन अत्यंत विलक्षण था। मैं आचार्य महाप्रज्ञजी के प्रति श्रद्धा अर्पित करता हूँ।
अनुशासन और सामुदायिक चेतना का निर्माण करता है मर्यादा महोत्सव
मुख्य मुनिश्री महावीर कुमार जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि परम पूज्य आचार्य भिक्षु जैसे महान संत यदा-कदा ही जन्म लेते हैं। उन्होंने न केवल मर्यादाओं का निर्माण किया अपितु साधु-साध्वियों को उनके प्रति निष्ठावान बनाया। गौरव की बात यह है कि आज तक उनके द्वारा बनाई गयी मर्यादाओं में परिवर्तन की आवश्यकता महसूस नहीं हुयी। आचार्य भिक्षु ने शिष्यादिक ममत्व के परिहार के लिए, संयम की विशुद्धि के लिए, अनुशासन और न्याय मार्ग पर सभी चलें इसलिए मर्यादाएं निर्मित की। हमारे चतुर्थ आचार्य श्रीमद जयाचार्य की दूरदर्शिता का परिणाम है कि मर्यादा महोत्सव हमें मर्यादाओं के प्रति निष्ठा रखने की प्रेरणा देता है, हमारे भीतर अनुशासन की चेतना और सामुदायिक चेतना का निर्माण करता है। मुख्य मुनिप्रवर ने गुरुदेव श्री तुलसी द्वारा रचित पंचसूत्रम के सूत्रों - अनुशासन सूत्र, व्यवस्था सूत्र, चर्या सूत्र, आलंबन सूत्र और शांत सहवास सूत्र की व्याख्या की। मुख्यमुनिश्री ने आगे कहा - अतीत के आचार्यों और मर्यादाओं का पालन करने वाले साधु-साध्वियों और श्रावक-श्राविकाओं का भी धर्मसंघ की प्रगति में महनीय योगदान है। वर्तमान में हम आचार्यश्री महाश्रमणजी की छत्र छाया में धर्म संघ निश्चिन्त होकर निरंतर प्रगति के सोपानों क पर आरोहण करता जा रहा है। आप एक पारस पत्थर के समान हैं, आपका आभामंडल पवित्र और तेजस्वी है। हर व्यक्ति आपके सान्निध्य में आकर आध्यात्मिक चेतना का अनुभव करता है।
मंगल प्रवचन के पूर्व मुमुक्षु बहनों ने गीत का संगान किया एवं प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री महाश्रमण मर्यादा व्यवस्था समिति के अध्यक्ष कीर्तिभाई संघवी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ समाज भुज-कच्छ ने संयुक्त रूप में गीत का संगान किया। भुज से संबद्ध मुनि अनंतकुमारजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। भुज ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा ‘शासनश्री साध्वी अशोकश्री पावन पथगामिनी’ पुस्तक आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की गई। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
संस्था शिरोमणि तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष रमेश डागा, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के अध्यक्ष हिम्मत माण्डोत, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अमरचंद लुंकड़, अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष प्रताप दुगड़, विकास परिषद के सदस्य पदमचन्द पटावरी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आगामी मर्यादा महोत्सव क्षेत्र छोटी खाटू के तेरापंथ समाज ने गीत की प्रस्तुति दी। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-अहमदाबाद के सदस्यों ने भी गीत की प्रस्तुति दी। अक्षय तृतीया व्यवस्था समिति-डीसा की ओर से रतनलाल मेहता ने अपने विचार व्यक्त किए।