वैयावृत्य से हो सकता है तीर्थंकर नाम-गोत्र का बंध : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

वैयावृत्य से हो सकता है तीर्थंकर नाम-गोत्र का बंध : आचार्यश्री महाश्रमण

गुजरात प्रांत के कच्छ क्षेत्र के भुज में आयोजित तेरापंथ धर्मसंघ की मर्यादाओं का महोत्सव—161वां मर्यादा महोत्सव का प्रथम दिवस।
भैक्षव शासन के एकादशम अधिशास्ता, महामनस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल मंत्रोच्चार के साथ, तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु एवं उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा एवं मर्यादा महोत्सव के संस्थापक श्रीमद जयाचार्य का स्मरण करते हुए 161वें मर्यादा महोत्सव के त्रिदिवसीय कार्यक्रम के शुभारंभ की घोषणा की। इसके साथ ही आचार्य भिक्षु द्वारा लिखित अंतिम मर्यादा पत्र को स्थापित किया।
बहुश्रुत परिषद् सदस्य मुनि दिनेश कुमार जी ने उद्घोष एवं गीत का संगान किया। मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति-भुज के स्वागताध्यक्ष नरेन्द्रभाई मेहता ने अपनी अभिव्यक्ति दी। उपासक श्रेणी के सदस्यों ने 'शासन में काम करें जीवन भर' गीत का सुमधुर संगान किया।
महामनीषी आचार्य प्रवर ने मर्यादा महोत्सव के प्रथम दिन धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा - आज जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ का त्रिदिवसीय मर्यादा महोत्सव समारोह आरंभ हुआ है। यह बसंत पंचमी के दिन से प्रारंभ होता है। मेरा प्रश्न है कि यह त्रिदिवसीय कार्यक्रम कब से प्रारंभ हुआ तथा सेवा केंद्रों में सेवा-चाकरी करने की परंपरा कब से शुरू हुई?
सेवा हेतु साध्वी वृंद द्वारा निवेदन
साध्वी मुदितयशाजी ने सेवा के महत्व को उजागर करते हुए कहा कि निर्युक्तिकार आचार्य भद्रबाहु ने सेवा के चार प्रयोजन प्रस्तुत किए, यथा -समाधि, ग्लानि निवारण, प्रवचन प्रभावना एवं सनाथता की अनुभूति। साध्वी वृंद ने 'श्रमणवरगंधहस्ति' आचार्य प्रवर से सेवा की प्रार्थना की।
मुनिवृंद द्वारा सेवा का निवेदन
मुनिश्री कुमारश्रमणजी ने अपने वक्तव्य में कहा कि सेवा करने के दो भाव हैं - साधना और कृतज्ञता। तेरापंथ धर्मसंघ में सेवा को साधना और निर्जरा से जोड़ा गया गया है। यहाँ आदर, विनम्रता, धैर्य और जागरूकता सेवा को विलक्षण बनाते हैं। मुनिवृंद ने भी आचार्य प्रवर से सेवा का अवसर प्रदान करने का निवेदन किया।
सेवा का महत्व:
सेवा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि उत्तराध्ययन के 29वें अध्ययन में प्रश्न किया गया कि वैयावृत्य करने से जीव को क्या प्राप्त होता है? उत्तर दिया गया - इससे जीव तीर्थंकर नाम-गोत्र का बंध कर लेता है। सेवा का बड़ा महत्त्व है, वैयावृत्य से पुण्योपार्जन हो सकता है, परन्तु हमें पुण्य बंध की लालसा नहीं करनी चाहिए। चाहे हम तीर्थंकर बने या न बने, तपस्वी और साधु तो बने ही रहना चाहिए। सेवा का भाव निरंतर बना रहना चाहिए, क्योंकि सेवा एक ऐसा तत्व है जिसमें अहिंसा निहित होती है। सेवा देने वाला हर स्थिति में समभाव बनाए रखे।
सेवा अनेक रूपों में हो सकती है— दूसरों के लिए कार्य करना, वैयावृत्य करना, वृद्धों की सेवा करना, बीमार और असहायों की सहायता करना, प्रशासनिक कार्यों में योगदान देना, प्रवचन करना, अध्यापन करना, साधु-साध्वियों की व्यवस्था, पृच्छा करना, समाज की संस्थाओं को दृष्टि देना, यात्राएं करना आदि सब सेवा के ही रूप हैं। प्रवचन करना भी एक प्रकार की सेवा है। साधु-साध्वियां न्यारा में रहें तो आठ प्रहर में एक बार व्याख्यान देने का प्रयास करना चाहिए। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के समय तो माईक आदि की व्यवस्था भी नहीं होती थी, तब भी वे प्रतिदिन प्रवचन किया करते थे। आज कई साधु-साध्वियों का दीक्षा दिवस है, दीक्षा देना भी एक प्रकार की सेवा है। मुनि कुमारश्रमणजी के निमित्त से दीक्षा की बात याद आ गई।
पारमार्थिक शिक्षण संस्था की मुमुक्षु बाइयों को संभालना भी अच्छी सेवा है। साध्वीवर्या और अनेक समणियां भी इस कार्य से जुड़ी हुई हैं। समाज के लोग अपने ढंग से ध्यान दे लेते हैं। इनकी सेवा करना भी अच्छी बात होती है। मुमुक्षु की संख्या वृद्धि का प्रयास जितना संभव हो सके, करने का प्रयास करना चाहिए।
पूज्य प्रवर ने कहा कि आचार्य श्री तुलसी और आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी समारोह के मध्य सेवा केंद्रों की नियुक्ति करते थे। मैं भी उनका अनुकरण करते हुए समारोह के मध्य नियुक्ति कर रहा हूँ। पूज्य प्रवर द्वारा धर्मसंघ के विभिन्न सेवा केंद्रों में सेवा दायी सिंघाड़ों की नियुक्ति की गई।
पूज्य प्रवर ने आगे कहा कि सभी अपने-अपने ढंग से यथा योग्य सेवा देने का प्रयास करते रहें। सेवा देने वाले चित्त समाधि और साता में रहें और सेवा लेने वाले भी विवेक और पुरुषार्थ का परिचय दें। सबमें सेवा का संस्कार बना रहे। पूज्य प्रवर ने फ़रमाया कि श्रावक-श्राविका समाज भी अनेक रूपों में सेवा करता है। चिकित्सीय सेवा, मार्ग सेवा और अन्य सेवाओं में संलग्न होना भी महत्वपूर्ण है।
यूनीक है तेरापंथ धर्मसंघ
साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशाजी ने अपने उद्बोधन में कहा - सेवा एक शाश्वत धर्म है। यह अपने और पराये के बीच की भेदरेखा को मिटने का उपाय है। आज के दिन तेरापंथ धर्मसंघ के सरताज सेवा केंद्रों के लिए साधु-साध्वियों की नियुक्ति करते हैं। ठाणं सूत्र में कहा गया है - साधु को आठ स्थानों में जागरूक रहना चाहिए। उनमें से एक है - ग्लान की सेवा। जैन शासन के गौरवशाली अध्याय 'तेरापंथ' की यूनीकनेस का एक कारण है - सेवा केंद्रों की स्थापना। यहाँ साधु-साध्वियों की सेवा गृहस्थ द्वारा नहीं साधु-साध्वियों द्वारा ही की जाती है। धर्मसंघ में आचार्य प्रवर द्वारा सेवा और चिकित्सा की व्यवस्था की जाती है। इस व्यवस्था को बनाये रखने में साधु-साध्वियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। हमारे साधु-साध्वी भी शरीर चला जाए पर सेवा से पीछे नहीं हटते।
सेवा में समण श्रेणी भी अच्छा परिचय देती है। श्रावक समाज भी सेवा में जागरूक और तत्पर रहता है। चिकित्सा ही नहीं, विहार सेवा, पर्युषण साधना में उपासक श्रेणी, संघीय संस्थाओं आदि में श्रावक समाज की संघ निष्ठा यूनीक है। हम अहंकार और ममकार को विकलित कर महान निर्जरा की भावना से संघ सेवा में योगभूत बनते रहें और संघ सेवा कर भिक्षु शासन के उपकारों से उऋण होने का प्रयास करते रहें।
मर्यादा महोत्सव के पावन अवसर पर जैन विश्व भारती द्वारा जैन आगम ठाणं पर पूज्यवर के प्रवचनों पर आधारित कृति 'छः बातें ज्ञान की', समणी कुसुमप्रज्ञाजी द्वारा तैयार 'प्रकीर्णक संचय' खंड दो, जय-तिथि पत्रक एवं मित्र परिषद् द्वारा तिथि दर्पण पूज्यवर को समर्पित किए गए। समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने 'प्रकीर्णक संचय' के बारे में विस्तृत जानकारी दी। पूज्य गुरुदेव ने आशीर्वचन प्रदान करते हुए फ़रमाया - समणी कुसुमप्रज्ञाजी व्याख्या साहित्य के कार्य में अद्वितीय समणी हैं।
इस अवसर पर छाजेड़ परिवार एवं गणमान्य व्यक्तियों द्वारा कन्हैयालाल छाजेड़ स्मृति ग्रंथ - 'जो प्राप्त है वह पर्याप्त है' पूज्यवर को समर्पित किया गया। संपादक डॉ. शांता जैन, विकास परिषद् सदस्य पदमचंद पटावरी एवं मनीषा छाजेड़ ने जीवन ग्रंथ के बारे में अपने प्रस्तुति दी। छाजेड़ परिवार के सदस्यों ने गीत का संगान किया।
पूज्यप्रवर ने श्री कन्हैयालाल छाजेड़ की सेवा भावना को याद करते हुए कहा कि वे धर्मसंघ के एक आदर्श कार्यकर्ता थे। वे तेरापंथ विकास परिषद के संयोजक रहे और धर्मसंघ के हित में अनेक सेवाएं दीं।
भुज से संबद्ध 'बेटी तेरापंथ की' की सदस्याओं ने गीत की प्रस्तुति दी। भारतीय जनता पार्टी के कच्छ जिलाध्यक्ष देवजी भाई अहीर ने आचार्यश्री के दर्शन कर अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। स्मृतिवन के डायरेक्टर पाण्डेयजी, अमृतवाणी के अध्यक्ष ललित दुगड़, मदनलाल तातेड़, आचार्य भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी की ओर से मर्यादा कोठारी, आचार्यश्री तुलसी शांति प्रतिष्ठा, गंगाशहर की ओर से हंसराज डागा, प्रेक्षा विश्व भारती के भेरुभाई चौपड़ा, प्रेक्षा इंटरनेशनल के अध्यक्ष अरविंद संचेती ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।