सुकृत कार्य के लिए करें समय का उपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सुकृत कार्य के लिए करें समय का उपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण

भैक्षव गण सरताज आचार्यश्री महाश्रमणजी ने माधापर प्रवास के द्वितीय दिन अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि बत्तीस आगमों में उत्तराध्ययन एक प्रमुख आगम है, जिसमें 36 अध्ययन हैं। कुछ अध्ययन तात्विक जानकारी से परिपूर्ण हैं, कुछ अध्ययन परिसंवाद के रूप में हैं, कहीं घटना-प्रसंग हैं, तो कहीं शिक्षण-प्रशिक्षण और अध्यात्म का दिशा दर्शन उपलब्ध होता है।
उत्तराध्ययन के दसवें अध्ययन की विशेषता यह है कि उसमें एक श्लोक को छोड़कर सभी श्लोकों का चौथा चरण समान है - 'समयं गोयम मा पमायए', जिसका अर्थ है— 'गौतम! समय का प्रमाद मत करो।' गौतम का नाम तो प्रतीक है, यह संदेश हम सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
समय बहुमूल्य है, लेकिन यह हमें निःशुल्क प्राप्त होता है। निःशुल्क मिलने वाली वस्तु का भी हमें उचित मूल्यांकन करना चाहिए। दुनिया में अच्छा और घटिया व्यक्ति कौन है ? पूज्य प्रवर ने समाधान देते हुए फ़रमाया कि मैंने एक परिभाषा बनाई है— 'समय का सदुपयोग करने वाला व्यक्ति अच्छा होता है और समय का दुरुपयोग करने वाला व्यक्ति तुच्छ होता है।' समय को व्यर्थ न जाने दें। वर्षा के जल की भांति इसे संचित कर उपयोगी बनाएं, इसे व्यर्थ न बहने दें।
जीवन कितना लंबा होगा, यह हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन जीवन को कैसे जीना है, यह हमारे हाथ में है। हर रात सोने से पहले चिंतन करें कि आज मैंने सुकृत क्या किया? धर्म का कौन-सा विशेष कार्य किया? सूर्य प्रतिदिन उदय होकर सायंकाल अस्त हो जाता है, और उसके साथ ही हमारे आयुष्य का एक अंश भी समाप्त हो जाता है। प्रतिदिन हमारी उम्र घट रही है।
सुफल, दुष्फल और निष्फल— ये तीन श्रेणियां होती हैं। यदि दिनभर अच्छे कर्म किए, तो वह सुफल है। यदि दिनभर पापकर्म किए, तो वह दुष्फल है। यदि न धर्म किया, न पाप किया, तो वह निष्फल है। हमें अपने समय को फलदायी बनाने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति सोचे कि क्या मैंने आज सामायिक की, किसी की धार्मिक या आध्यात्मिक सेवा की? यदि हां, तो उसका दिन सुफल हो गया। जैसे ओस की बूंद गिरकर समाप्त हो जाती है, वैसे ही हमारा एक दिन समाप्त हो जाता है। इसलिए कहा गया है— समय का प्रमाद मत करो।
जो व्यक्ति ज्ञान, ध्यान या अच्छे कार्यों में संलग्न नहीं रहता और पूरा दिन व्यर्थ ही घूमता रहता है, वह जीवन को निष्फल बना रहा है। समय का उचित प्रबंधन आवश्यक है। हर व्यक्ति में अलग-अलग योग्यताएं होती हैं, इसलिए अपनी क्षमता के अनुरूप समय का सदुपयोग करें। हमारे जीवन की कोई उपयोगिता सिद्ध होनी चाहिए। हमें समय को सुफल बनाने का प्रयास करना चाहिए।
पूज्यवर के श्रीचरणों में साध्वी गौरवयशाजी एवं साध्वी नवीनप्रभाजी ने अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कीं। स्थानीय सभा के अध्यक्ष संजय संघवी, जीतू भाई भाभेरा, शशिकांतभाई भाभेरा ने अपने उद्गार व्यक्त किये। जैनम व झील संघवी, दीप्ति और रिया जैन तथा संघवी परिवार की महिलाओं ने गीत का संगान किया। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी द्वारा 77वें अणुव्रत स्थापना दिवस के बैनर का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।