सक्षम शरीर से मिल सकता है साधना और निर्जरा में सहयोग : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्धमान नगर से विहार कर माधापर स्थित पान वल्लभ अतिथि गृह में पधारे। पूज्यवर के स्वागत में माधापर में अट्ठम तप की आराधना चल रही थी। पूज्यवर ने अट्ठम तप करने वालों को प्रत्याख्यान करवाया। मंगल देशना प्रदान करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि हमारे जीवन में कुछ कर्मचारी हैं, जिनके द्वारा कार्य संपन्न होता है। वे हैं - शरीर, वाणी और मन। हमें आत्मा को मालिक मानना चाहिए क्योंकि मूल तत्व आत्मा ही है, जो स्थायी तत्व है। शरीर, वाणी और मन तो अशाश्वत हैं। जब जीव मोक्ष में जाता है, तब ये तीनों तत्व नहीं रहते, केवल आत्मा शेष रहती है। इसलिए आत्मा ही मूल तत्व और मालिक है।
यह शरीर औदारिक शरीर है, परंतु कभी वैक्रिय या आहारक भी हो सकता है। आहारक शरीर केवल मनुष्यों का होता है, जबकि वैक्रिय शरीर चारों गतियों में पाया जा सकता है। औदारिक शरीर मनुष्य और तिर्यंच के होते हैं, जबकि आहारक शरीर केवल विशिष्ट ज्ञानी साधुओं का होता है।
हमारे पास स्थूल शरीर है, और इसके साथ ही सूक्ष्म शरीर तैजस तथा सूक्ष्मतर कार्मण शरीर भी होते हैं। शरीर से हम अनेक कार्य कर सकते हैं। इसमें भी दो हाथ और दो पांव – ये चार हमारे अच्छे कर्मचारी हैं। यदि ये मजबूत हैं, तो इनका अच्छा उपयोग करना चाहिए। हमारा संपूर्ण शरीर निरोग रहे तो हमारी साधना और निर्जरा में सहयोग मिल सकता है। वाणी के माध्यम से हम विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। मन के द्वारा हम चिंतन, स्मृतियां और कल्पनाएं करते हैं। मन से चिंतन कर व्यक्ति श्रेष्ठ कार्य कर सकता है। पूज्य प्रवर ने आगे फरमाया कि आज माघ कृष्ण चतुर्दशी - हाजरी का दिन है। हाजरी में प्रायः सभी साधु-साध्वियां उपस्थित होते हैं। यह हमारे धर्म संघ के तीसरे आचार्यश्री रायचंदजी स्वामी के महाप्रयाण का दिवस भी है। वि. सं. 1908 में माघ कृष्ण चतुर्दशी के दिन रावलिया में आचार्यश्री रायचंद जी का महाप्रयाण हुआ था। वे आचार्य भिक्षु के समय में ही छोटी उम्र में दीक्षित हो गए थे। युवावस्था में वे आचार्य बने और लगभग 30 वर्षों तक उनका शासन रहा। गुजरात कच्छ में सबसे पहले पधारने वाले हमारे धर्म संघ के आचार्यश्री रायचंदजी स्वामी थे। उन्हें ब्रह्मचारी कहा जाता था। उनके उत्तराधिकारी श्रीमद् जयाचार्य का शासन भी लगभग 30 वर्षों तक रहा। मैं पूज्य ऋषिरायजी को मंगल भावों से वंदना करता हूं। थली क्षेत्र का भी प्रादुर्भाव पूज्य ऋषिराय महाराज के समय हुआ था।
पूज्यवर ने हाजरी का वाचन कराते हुए कहा कि तेरह अवयवों वाला साधु का धर्म है, इसके प्रति हमें जागरूक रहना चाहिए। यह साधु का आचार है। आचार्यश्री की अनुज्ञा से साध्वी देवार्यप्रभाजी व साध्वी आर्षप्रभाजी ने लेखपत्र का वाचन किया। आचार्यश्री ने दोनों साध्वियों को तीन-तीन कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त साधु-साध्वियों ने अपने स्थान खड़े होकर लेखपत्र का उच्चरित किया।
पूज्यवर के स्वागत में तेरापंथी सभा-माधापर के अध्यक्ष सुरेशभाई मेहता, समस्त जैन समाज के प्रमुख हितेशभाई खण्डोल, मूर्तिपूजक जैन संघ के प्रमुख बसंतभाई मेहता, स्थानकवासी जैन संघ के प्रमुख बसंतभाई भाभेरा, यक्ष बोतेरा संघ के मैनेजिंग ट्रस्टी नरेशभाई शाह ने अपनी-अपनी अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। ज्ञानशाला की बालिका काव्यश्री खण्डोल ने अपनी प्रस्तुति दी। सूरत चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा पूज्य सन्निधि में सोश्यल मिडिया का प्रतिवेदन लोकार्पित किया गया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।