
धर्म का प्राथमिक और महत्वपूर्ण साधन है शरीर : आचार्यश्री महाश्रमण
महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में आत्मा तो मुख्य तत्व है ही, साथ ही शरीर का भी योगदान है। हम प्रवृत्तियाँ करते हैं, जिनमें शरीर का बड़ा सहयोग रहता है। धर्म की प्रवृत्तियाँ करते हैं, तब भी शरीर का सहयोग आवश्यक होता है। जब तक व्यक्ति का शरीर सक्षम है, तब तक वह अच्छे कार्य कर सकता है। शरीर की अक्षमता के तीन संदर्भ हैं— पहला बुढ़ापा, दूसरा व्याधि और तीसरा इंद्रिय दौर्बल्य। शास्त्रकार ने कहा है कि जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करे, तब तक धर्म का आचरण कर लेना चाहिए। जो 60-70 वर्ष की आयु के हो चुके हैं, आगम की भाषा में वे 'जाति स्थविर' कहलाते हैं। यदि बुढ़ापा पीड़ित न करे, तो विशेष चिंता की बात नहीं है।
एक मुनिजी ने कहा— एक समय था जब मैं कहता था, वैसे पैर चलते थे, पर अब पैर जैसे कहते हैं, वैसे मैं चलता हूँ। परिस्थिति के अनुरूप स्वयं को ढाल लेने से सक्रियता बनी रह सकती है। यात्राएँ करनी हों, तो उम्र बढ़ने से पहले कर लेनी चाहिए। जब तक शरीर व्याधियों से ग्रसित न हो, तब तक धर्म का आचरण करना चाहिए। जब तक इंद्रियाँ क्षीण न हो जाएँ, तब तक धर्म का पालन करना आवश्यक है। शरीर धर्म का प्राथमिक और महत्वपूर्ण साधन है। निरोग रहने के प्रति जागरूकता होगी, तो सेवा भी अच्छी हो सकेगी।
शरीर को नौका कहा गया है। शरीर रूपी नौका से संसार रूपी अर्णव (महासागर) को पार किया जा सकता है। शरीर से त्याग और तप की साधना करें। त्याग और तप से संसार सागर को पार किया जा सकता है। संयम और तप की निर्मल साधना चलती रहे। मर्यादा महोत्सव का त्रिदिवसीय कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। यह महोत्सव हमें प्रेरणा देने वाला बने। आचार्य भिक्षु ने जो लिखित दस्तावेज तैयार किया, उसी से इस महोत्सव का संबंध जुड़ा हुआ है। यह हमारा वार्षिक महोत्सव का समय होता है, जिससे हमें अनेक प्रकार की प्रेरणाएँ मिलती हैं। हमें मर्यादा, संयम और तप के प्रति जागरूक रहना चाहिए, यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
मंगल प्रवचन के पश्चात मुनि राजकुमारजी ने गीत का संगान किया। कच्छ-मोरबी के सांसद व गुजरात भाजपा प्रदेश महामंत्री विनोद चावड़ा ने आचार्यप्रवर के दर्शन कर अपने विचार व्यक्त किए। समणी नियोजिका समणी अमलप्रज्ञाजी, समणी कुसुमप्रज्ञाजी, समणी आर्जवप्रज्ञाजी, समणी समत्वप्रज्ञाजी, समणी हिमप्रज्ञाजी, समणी जिज्ञासाप्रज्ञाजी, समणी करुणाप्रज्ञाजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने मंगल आशीष प्रदान करते हुए कहा कि मर्यादा महोत्सव के पश्चात का यह समय है। कई समणियों के ग्रुप्स विदेश यात्रा कर लौटे हैं। नवकार की माला नाश्ते से पहले-पहले करने का प्रयास करना चाहिए। समणियां जहां भी रहें, अच्छा कार्य करती रहें। तेरापंथी सभा-टोहाणा के पदाधिकारियों द्वारा 'सामायिक साधना' नामक पुस्तक आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की गई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।