
सत्य से बनाएं जीवन को पवित्र और निष्कलंक : आचार्यश्री महाश्रमण
शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन वाङ्मय में अठारह पाप बताए गए हैं। इनमें दूसरा पाप है - मृषावाद, अर्थात झूठ बोलना। मनुष्य झूठ बोलने के लिए किसी न किसी प्रयोजन से प्रेरित होता है। वह या तो अपने हित के लिए झूठ बोलता है या किसी अन्य के हित या बचाव के लिए। स्वयं को तात्कालिक या भौतिक लाभ पहुँचाने के लिए मनुष्य झूठ का सहारा ले सकता है। लेकिन वास्तव में झूठ बोलना अपने आप में अहितकारी है। लोग अपने अहित से बचने या लाभ प्राप्त करने के लिए झूठ बोलते हैं। कभी क्रोध के कारण, तो कभी भयवश झूठ बोला जाता है। किंतु हिंसा उत्पन्न करने वाले झूठ को न स्वयं बोलना चाहिए, न दूसरों से बुलवाना चाहिए।
साधु अपने संपूर्ण जीवन में तीन करण और तीन योग के माध्यम से मृषावाद का त्याग करते हैं। गृहस्थों को भी प्रयास करना चाहिए कि वे झूठ बोलने से यथासंभव बचें। यदि व्यक्ति में निष्ठा और हिम्मत हो, तो वह झूठ बोलने से बच सकता है। न्यायालय में खड़े होकर झूठी गवाही देना या किसी पर झूठा आरोप लगाना भी अनुचित है। न्यायालय तो न्याय के लिए होता है, वहाँ पवित्र पुस्तक पर हाथ रखकर झूठ बोलना तो और भी निंदनीय कृत्य है।
सत्य के मार्ग में कठिनाइयाँ आ सकती हैं, लेकिन सत्य कभी पराजित नहीं होता। सत्यमेव जयते - सत्य की अंततः विजय होती ही है। सत्य की राह पर चलते हुए अंत में आनंद की प्राप्ति होती है। व्यापार में भी अनैतिक तरीकों से धन कमाने से बचना चाहिए। ईमानदारी और नैतिकता को बनाए रखना आवश्यक है। बड़े सुख के लिए कुछ कठिनाइयाँ सहनी पड़ सकती हैं, लेकिन गृहस्थ को अपने सामाजिक, व्यावसायिक और व्यापारिक जीवन में ईमानदारी बनाए रखनी चाहिए। ईमानदारी से अर्जित धन ही सबसे श्रेष्ठ होता है। हमें किसी पर झूठे आरोप नहीं लगाने चाहिए और न ही किसी की झूठी निंदा करनी चाहिए। जीवन को पवित्र और निष्कलंक बनाए रखना चाहिए। सभी के साथ मैत्रीभाव रखना चाहिए। झूठी बातें फैलाने से बचना चाहिए और सत्य एवं ईमानदारी के मार्ग पर चलना चाहिए, भले ही इसके लिए कुछ कष्ट सहन करना पड़े।
आचार्य प्रवर के मंगल प्रवचन के उपरान्त अजरामर लीम्बड़ी संप्रदाय की साध्वी पद्मिनीबाई आदि साध्वियों ने आचार्यश्री की अभ्यर्थना में गीत का संगान करते हुए अपने भाषण में कहा कि आप साक्षात् भगवान महावीर के ही स्वरूप हैं। आप समस्त आचार्य संपदा से सम्पन्न हैं। आपके दर्शन कर हम लोगों का जीवन धन्य हो गया। आचार्यश्री ने साध्वियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। तदुपरान्त समणी क्षांतिप्रज्ञाजी, साध्वी मुक्तिश्रीजी व साध्वी रुचिरप्रभाजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। अजरामर लीम्बड़ी संप्रदाय की साध्वियों ने मुमुक्षु केविन को एक पत्र समर्पित किया, जिसे मुमुक्षु केविन ने गुरुचरणों में अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।