
हर व्यक्त्ति करे सोऽहं की अनुप्रेक्षा
कालबादेवी स्थित तेरापंथ भवन के आचार्य तुलसी सभागृह में उपस्थित श्रावक-श्रविकाओं को सम्बोधित करते हुए प्रोफेसर साध्वी मंगलप्रज्ञा जी ने कहा- हर व्यक्ति को आचारांग सूत्र के प्रेरक साधना सूत्र - सोऽहं की अनुप्रेक्षा करनी चाहिए। व्यक्ति अपने परमात्म स्वरूप को पहचाने। स्वबोध होने पर स्वतः चिन्तन आत्मोन्मुखी बन जाता है। साध्वीश्री ने कहा- व्यक्ति का अधिकतर सम्बन्ध पदार्थ जगत के साथ रहता है। यह सत्य है कि पदार्थ जीवनयापन की अनिवार्य आवश्यकता है, पर विवेक चेतना भी जागृत रहनी चाहिए। जीवन में अध्यात्म की भी परम आवश्यकता है, अन्य प्रवृत्तियों के साथ अध्यात्मभाव भी बढ़ता रहे। परम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आत्मकेन्द्रित बनना आवश्यक है। जितना हो सके अनासक्त भाव जागरण की दिशा में पुरुषार्थ होता रहे। हर व्यक्ति में परमात्मा बनने का सामर्थ्य है, पर उसकी प्राप्ति के लिए शक्ति का भी सम्यक नियोजन होना चाहिए।
ऐसा लग रहा है, हम अपनी भीतरी दुनिया को भूल गए हैं। साम्यभाव की साधना करने में चित्त को लगाए। शक्ति संवर्धन के अनेक प्रयोग हमें प्राप्त हैं, आवश्यकता है श्रद्धा के साथ शक्ति की साधना करें। मात्र पदार्थ जगत से व्यामोह न हो, अध्यात्म के बिना पदार्थ जगत तनाव और समस्या पैदा करता है। साध्वी राजुलप्रभा जी ने अपने विचार व्यक्त किये। साध्वी सुदर्शनप्रभा जी ने ध्यान का प्रयोग करवाया।