कषाय को प्रतनू करना रहे हमारी साधना का लक्ष्य : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शीणाय। 04 मार्च, 2025

कषाय को प्रतनू करना रहे हमारी साधना का लक्ष्य : आचार्यश्री महाश्रमण

महान यायावर आचार्यश्री महाश्रमण जी गांधीधाम के बाहरी क्षेत्रों की यात्रा कराते हुए नीवा होम्स परिसर में पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि जैन वांग्मय में 'कषाय' शब्द आता है। कषाय वे होते हैं
जिनसे कर्ममल की आय होती है। कर्म बंध दो प्रकार के होते हैं—साम्परायिक बंध और ईर्यापथिक बंध। जो सकषाय बंध होता है, वह साम्परायिक बंध कहलाता है।
दसवें गुणस्थान तक सकषाय बंध यानी साम्परायिक बंध होता है। अकषाय अथवा वीतराग अवस्था में जो कर्म बंध होता है, वह ईर्यापथिक बंध कहलाता है। ग्यारहवें, बारहवें एवं तेरहवें गुणस्थान में ईर्यापथिक बंध होता है, जो मात्र योग से होता है। वहाँ कषाय नहीं होता, यह बंध नाममात्र का होता है। एक समय में बंधा, दूसरे में भोगा और तीसरे में वह कर्म समाप्त हो गया। सकषाय बंध गीली मिट्टी के गोले के समान होता है, जबकि ईर्यापथिक बंध सूखी मिट्टी के गोले के समान होता है।
तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अयोगी केवली, जो कि चौदहवाँ गुणस्थान है, वहाँ बंध होता ही नहीं है। वहाँ न कषाय होता है और न ही योग। कर्म बंध के मुख्य दो कारण होते हैं—योग या कषाय। चौदहवाँ गुणस्थान तो शैलेषी अवस्था होती है। इन गुणस्थानों को मिलाकर बंध के संबंध में तीन भाग किए जा सकते हैं—साम्परायिक बंध, ईर्यापथिक बंध और अबंध अवस्था वाले गुणस्थान। साम्परायिक बंध दसवें गुणस्थान तक होता है। ईर्यापथिक बंध ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थान में होता है। चौदहवाँ गुणस्थान अबंध अवस्था का गुणस्थान है। सिद्धों में तो कोई भी बंध नहीं होता।
सिद्ध हो या संसारी, आठ आत्माओं में से कम से कम तीन आत्माएँ तो प्रत्येक जीव में मिलती हैं—द्रव्य आत्मा, उपयोग आत्मा और दर्शन आत्मा। बाकी पांच आत्माएँ (कषाय, योग, ज्ञान, चारित्र और वीर्य आत्मा) स्थिति के अनुसार होती हैं। कषाय भी आत्मा का एक स्वरूप है। हमें अपनी साधना के माध्यम से कषाय को कमजोर करने का प्रयास करना चाहिए। क्रोध को उपशम के द्वारा, अहंकार को मार्दव के द्वारा, माया को आर्जव के द्वारा और लोभ को संतोष के द्वारा जीतने का प्रयास करना चाहिए। मूल में कषाय मुक्ति ही मोक्ष जाने का मुख्य आधार है। अकषाय की स्थिति, वीतरागता की स्थिति आ गयी तो अयोगी अवस्था आएगी ही और मोक्ष निश्चित ही प्राप्त होगा। हमारी आत्मा कषाय से मुक्त होकर सिद्धावस्था की ओर आगे बढे। पूज्यप्रवर के स्वागत में नीवा होम्स के डायरेक्टर हेमंत भट्टी ने उद्गार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।