संवर और निर्जरा हैं आध्यात्मिकता के मुख्य तत्त्व : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

गांधीधाम। 11 मार्च, 2025

संवर और निर्जरा हैं आध्यात्मिकता के मुख्य तत्त्व : आचार्यश्री महाश्रमण

शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शांति का स्रोत बहाते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में अनेक दर्शन हैं, जिनमें एक है जैन दर्शन। जैन दर्शन में अनेक सिद्धांत हैं, जैसे आत्मवाद, कर्मवाद, लोकवाद, क्रियावाद, पुनर्जन्मवाद आदि-आदि। इन सिद्धांतों में आत्मवाद एक प्रमुख सिद्धांत है। आत्मा नाम का तत्व है और अनंत-अनंत आत्माएं दुनिया में हैं। प्रत्येक आत्मा का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है। संसार में आत्मा की अवस्था में पुनर्जन्म भी चलता रहता है। आत्मा कभी मरती नहीं, जलती नहीं, खंडित नहीं होती, अविच्छिन्न और शाश्वत रहती है। आत्मा अमर होती है। संसार में जन्म-मरण चलता रहता है। मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी होता है। यह संसार अध्रुव, अशाश्वत और दुःखमय है। हमें विचार करना चाहिए कि ऐसा कौन-सा कार्य करें जिससे हमारी आत्मा दुर्गति में न जाएं, नरक और तिर्यंच गति में जाने से बचें। मनुष्य जन्म भी ऐसे परिवार में न हो जहां धार्मिक लाभ न मिले।
18 पापों का सेवन करने वाला व्यक्ति दुर्गति को प्राप्त कर सकता है। जो इन 18 पापों से बचने का प्रयास करता है, तप करता है और कर्म निर्जरा करता है, वह दुर्गति में जाने से बच सकता है। तप-प्रधान व्यक्ति सुगति को प्राप्त कर सकता है। जो ऋजुमति हो, शांत, क्षमाशील और सहनशील हो, वह सुगति को प्राप्त कर सकता है। जो संयमी हो, परिषहों को जीतने वाला हो और निर्जरा के मार्ग पर चलता हो, वह भी सुगति को प्राप्त कर सकता है। हमें स्नेह, राग-द्वेष और दुर्गुणों से मुक्त रहना चाहिए। हमें यह मानव जीवन प्राप्त हुआ है, इसमें धर्म का लाभ उठाना चाहिए।
जीवन बीत रहा है, इसलिए हमें धर्म की साधना के प्रति जागरूक रहना चाहिए। मनुष्य के पास पूर्व पुण्य का बल हो सकता है, लेकिन केवल भोगने के बजाय भविष्य की भी चिंता करनी चाहिए। जीवन में धार्मिकता बनी रहनी चाहिए। संवर और निर्जरा अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। पुण्य प्राप्त करना कोई बड़ी बात नहीं, बल्कि हमें मोक्ष की कामना करनी चाहिए। पुण्य की लालसा न रखते हुए पुण्यकाल में भी संयम बनाए रखना चाहिए। धर्म का कार्य ही है—दुर्गति से बचाना।
आचार्यश्री ने विदेश जाने वाली समणियों को प्रेरित करते हुए कहा कि विदेशों में भी धर्म के संस्कार मिलते रहें, तप और तत्वज्ञान को समझाया जाए तथा ज्ञान का उचित उपयोग हो। पूज्यवर की सन्निधि में अग्रवाल समाज से समीर गर्ग, महेश्वरी फाउंडेशन के अध्यक्ष जे.पी. महेश्वरी, गांधीधाम महानगर पालिका के डिप्टी कमिश्नर मेहुल देसाई, कंडला कॉम्पलेक्स गढ़वी समाज से राजमा भाई, नरेश भाई शाह आदि अनेक व्यक्तियों ने अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कीं। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।