
गुरुवाणी/ केन्द्र
स्वयं सत्य खोजे, सब के साथ मैत्री करें : आचार्यश्री महाश्रमण
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी का कच्छ यात्रा में दुबारा भचाऊ पधारना हुआ। यहाँ के स्वामी नारायण गुरुकुल में अमृत देशना प्रदान कराते हुए शांतिदूत ने फरमाया कि सूत्र में दो बातें बताई गयी हैं- स्वयं सत्य की खोज करें और प्राणियों के प्रति मैत्री भाव रखें। दूसरे ने खोज लिया और हमें बता दिया यह एक बात है पर उस बात की यथार्थता का स्वयं अन्वेषण करें। जो स्वयं सत्य का साक्षात्कार कर लेते हैं वे केवलज्ञानी बन जाते हैं।
तीर्थंकर तो सर्वज्ञ-केवलज्ञानी होते हैं। उनको यह कहने की संभवतः अपेक्षा नहीं है कि 'उन्होंने ऐसा कहा था', वह कहते हैं - “मैं यह बता रहा हूं”। सर्वज्ञ को दूसरे का सहारा लेने की संभवतः अपेक्षा नहीं होती। क्योंकि उन्होंने स्वयं सत्य की खोज करली। हम सामान्य व्यवहार में भी स्वयं यथार्थ को समझने का, स्वयं ज्ञान करने का प्रयास करें। खुद का ज्ञान खुद का होता है। दूसरों के भरोसे रहने वाला संकट में पड़ सकता है।
किसी प्राणी के प्राणों का बिना मतलब हंतव्य न करें। सब प्राणियों के प्रति मैत्री रखें। साधु तो अहिंसा के प्रति पूर्णतया जागरूकता रखें, देख-देखकर चलें। गृहस्थ भी फालतू हिंसा से बचे। मनुष्य और तिर्यंच प्राणियों से भी मैत्री रखें। मैत्री और सच्चाई की आराधना से आत्मा अच्छी रह सकती है। पूज्यवर के स्वागत में स्वामीनारायण गुरूकुल के शास्त्री कृष्णादास स्वामी, ट्रस्टी एवं भाजपा नेता वागजी भाई अहीर, जिला पंचायत प्रमुख कनकसिंह ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।