
गुरुवाणी/ केन्द्र
मोक्ष की प्राप्ति हो हमारा उत्कृष्ट लक्ष्य : आचार्यश्री महाश्रमण
भैक्षवगण सम्राट आचार्यश्री महाश्रमणजी गांधीधाम के रिवेरा एलीगेंस परिसर में पधारे। अमृत देशना में पूज्यवर ने "सम्यक्त्व" शब्द की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए फरमाया कि यह शब्द विशेष रूप से जैन दर्शन में प्रयुक्त होता है, जिसका अर्थ होता है यथार्थ और सही। आचार्य प्रवर ने कहा कि व्यक्ति का ज्ञान सम्यक् हो, दर्शन और श्रद्धा सम्यक् हो तथा आचरण भी सम्यक् हो, तभी वह मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हो सकता है।
धार्मिक जगत में मोक्ष को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है और यदि अध्यात्म की साधना का कोई परम लक्ष्य है, तो वह केवल मोक्ष ही है। मोक्ष की प्राप्ति के पश्चात व्यक्ति को और कुछ प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहती। जीवन चक्र निरंतर चलता रहता है, व्यक्ति आता है और चला जाता है, किंतु जीवन का वास्तविक उद्देश्य यह होना चाहिए कि पूर्व जन्मों के कर्मों का क्षय किया जाए, आत्मा को निर्मल बनाया जाए और मोक्ष की दिशा में निरंतर आगे बढ़ा जाए। यही हमारा उत्कृष्ट लक्ष्य और साध्य होना चाहिए।
आचार्य प्रवर ने आगे कहा कि यदि गंतव्य तय हो, गंतव्य की चाह हो और उस दिशा में गति हो, तो मार्ग अपने आप मिल जाता है। यदि मोक्ष को हमने अपना गंतव्य बनाया है और हम स्वयं उसकी ओर बढ़ रहे हैं, तो सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र और तप हमारे मार्गदर्शक बन सकते हैं। इनकी साधना से मोक्ष की गति संभव हो जाती है। मानव जीवन को दुर्लभ बताया गया है। जिस प्रकार किसी राजा के तीन प्रमुख कर्तव्य होते हैं—सज्जनों की रक्षा करना, दुर्जनों को दंडित करना और प्रजा का भरण-पोषण करना—उसी प्रकार हमें भी अपने दुर्लभ मनुष्य जन्म का यथासंभव सदुपयोग करना चाहिए। आत्मा अमर है और वह निरंतर नए-नए जन्म धारण करती रहती है, अतः हमें धर्म की साधना में समय देना चाहिए ताकि हम मोक्ष की दिशा में अग्रसर हो सकें। यदि हमारा आचरण शुद्ध होगा, तो आगे का मार्ग स्वतः प्रशस्त हो जाएगा।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि भारतीय साहित्य में चिंतामणि रत्न, कामधेनु और कल्पवृक्ष को दुर्लभ माना गया है, उसी प्रकार मनुष्य जन्म भी अत्यंत दुर्लभ है। चारों गतियों में केवल मनुष्य योनि ही ऐसी है, जिसमें व्यक्ति अपनी अंतर्निहित शक्तियों का विकास कर अपनी मंजिल तक पहुंच सकता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मनुष्य जन्म में एक उत्तम गुरु का मिलना भी अत्यंत दुर्लभ होता है। गुरु का स्थान परमात्मा से भी ऊपर होता है क्योंकि वही जीवन की दिशा तय करता है। सच्चे गुरु के मार्गदर्शन से जीवन की राह सुंदर और सकारात्मक बन जाती है।
पूज्यवर के स्वागत में राजवी ग्रुप से कंचन सालेचा, महावीर सालेचा, रेखा चौपड़ा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। निशी, तेजस्वी संकलेचा ने अपनी प्रस्तुति दी। रिवेरा ग्रुप की बहनों ने स्वागत गीत का संगान किया। रिवेरा सोसायटी परिवार की ओर से मुकेश आचार्य एवं गुजरात की पूर्व विधानसभा अध्यक्ष निमाबेन आचार्य ने अपने उद्गार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी द्वारा किया गया।