विक्रम संवत् 2082 के शुभारंभ पर अध्यात्म एवं मैनेजमेंट गुरु ने दी सफलता के लिए समय नियोजन की प्रेरणा

गुरुवाणी/ केन्द्र

फतेहगढ़। 30 मार्च, 2025

विक्रम संवत् 2082 के शुभारंभ पर अध्यात्म एवं मैनेजमेंट गुरु ने दी सफलता के लिए समय नियोजन की प्रेरणा

तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने विक्रम संवत् 2082 के प्रथम दिन सम्पूर्ण समाज को वृहद मंगलपाठ की कृपा कराकर आशीर्वाद प्रदान किया। नववर्ष के शुभ अवसर पर पूज्यवर अपनी धवल सेना के साथ सेलारी गांव से लगभग 15 किलोमीटर का विहार कर फतेहगढ़ स्थित सरकारी उच्चतर माध्यमिक शाला में पधारे। बारह वर्ष पूर्व भी आचार्य प्रवर यहां पधारे थे। यह वही फतेहगढ़ है जहां आचार्य श्री डालगणी का मुनि अवस्था में चातुर्मास हुआ था। पूज्य डालगणी के अनंतर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया – 'शास्त्रों में कहा गया है कि जो रात्रि बीत जाती है, वह लौटकर नहीं आती। धर्म करने वाले की रात्रियाँ सफल होती हैं जबकि अधर्म में लिप्त व्यक्ति की रात्रियाँ निष्फल हो जाती हैं।'
रात्रि को समय का प्रतीक मानना चाहिए, क्योंकि वह वापिस नहीं आती। जो कार्य आज करना है, उसे आज ही कर लें। समय का उत्तम उपयोग करना चाहिए। विक्रम संवत् 2081 बीत गया, और अब 2082 आरंभ हो गया है। हमारे यहां प्राचीन काल में नववर्ष सावन मास से प्रारंभ होता था, परंतु गुरुदेव तुलसी के समय से यह परंपरा चैत्र शुक्ला एकम से शुरू हुई। मनुष्य यदि समय का सही उपयोग करे तो वह किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक कर सकता है। किसी भी कार्य के लिए उचित काल और क्षेत्र आवश्यक होते हैं। समय हमारे जीवन से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, और प्रकृति से हमें समय सहज रूप में प्राप्त होता है।
जीवन की व्यस्तता में से कुछ समय धर्म के लिए भी निकालना चाहिए। यदि व्यक्ति सचेत रहे, तो समय अवश्य निकल सकता है। अस्त-व्यस्त न बनें, मन शांत रखें, मन में प्रसन्नता बनाए रखें। जो कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण हों, उन्हें प्राथमिकता दें और जो कम आवश्यक ना हों, उन्हें त्याग दें। समय का नियोजन करें। इसे हम 'केवली समुद्घात' के उदाहरण से समझ सकते हैं—कि थोड़े समय में भी कर्मों को कैसे भोगा जा सकता है। यह उदाहरण आयुष्य कर्म सहित शेष तीन घाति कर्मों पर लागू होता है। समय का योजनाबद्ध उपयोग करें। काल तो निरंतर बीत रहा है, परंतु हमें उस बीतते समय को फलदायी बनाना है।
विक्रम संवत् 2082 में हम जैन विश्व भारती, लाडनूं पहुँच जाएंगे और विक्रम संवत् 2083 का संपूर्ण वर्ष वहीं पर व्यतीत होगा—ऐसी आशा है। उत्तर गुजरात, अहमदाबाद की यात्रा, कंटालिया और सिरियारी की यात्रा इसी वर्ष संपन्न हो सकती है। आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष का शुभारंभ भी इसी वर्ष होने जा रहा है। हम सभी इन कार्यक्रमों का यथोचित लाभ उठाने का प्रयास करें और समय का सदुपयोग करें। इसके साथ ही आचार्यश्री ने नववर्ष के शुभारम्भ के संदर्भ में उपस्थित श्रद्धालुओं को वृहद् मंगलपाठ सुनाकर आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री के स्वागत में वर्षा खंडोर, अशोक खंडोर ने अपनी अभिव्यक्ति दी। ‘बेटी तेरापंथ की’ सदस्या पुनीता पारेख आदि बेटियों ने स्वागत गीत का संगान किया।