
रचनाएं
तुम पारदर्शी समत्वदर्शी थे
महावीर तुम केवल महावीर ही थे, तुम्हें न श्रेय की चिंता न प्रेय की,
बस जिज्ञासा, निरञ्जन निराकार बनने की,
तुम न राग को जानते न द्वेष को,
बस वीतराग पद को पाना चाहते थे,
जहां न राग है, न शोक, न भोग,
और न जन्म, न मरण, न बुढ़ापा,
न आधि, न व्याधि, केवल समाधि,
तुम वंदनीय थे, तुम पूजनीय थे,
जीवन दर्शन के साक्षात अक्षय स्रोत थे,
तुम पारदर्शी थे तुम समत्वदर्शी और,
थे आत्मदर्शी सर्वज्ञदर्शी,
ज्ञानदर्शन के परमऋषि थे।
महावीर तुम केवल महावीर ही नहीं थे,
तुम जन-जन के पीर थे,
मानवता की तकदीर थे,
जैन जगत की नजीर थे,
साम्यवाद की तस्वीर थे,
समस्या समाधान के सूत्रधार थे,
आगम ग्रंथों के प्रवक्ता थे,
अनेकांत के उद्गाता, स्यादवाद के प्रदाता थे,
अहिंसा के प्रयोग धर्मा थे।
पूनिया को बांटा सत्यं शिवं सुन्दरं आलोक,
और बांटी मैत्री करुणा की अमृतधार,
करती है प्रज्ञा की रश्मि,
प्रणाम - प्रणाम - प्रणाम।