एक अनसुनी गूँज, एक अनकही सीख

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साध्वी केवलयशा

एक अनसुनी गूँज, एक अनकही सीख

जब भी हम भगवान महावीर का नाम सुनते हैं, आँखों के सामने एक तपस्वी, एक साधक और एक महान त्यागी का चित्र उभरता है। लेकिन क्या यह परिचय पर्याप्त है? क्या महावीर केवल वे थे जिन्होंने राजपाट छोड़ा, कठिन तपस्या की और मोक्ष प्राप्त किया? यदि हाँ, तो फिर उनके विचारों की आज क्या प्रासंगिकता है?
क्या उनका जीवन केवल अतीत की किताबों में दबा हुआ एक अध्याय है, या फिर वर्तमान की धड़कन में एक ध्वनि बनकर जीवित है? आज की पीढ़ी, जो तेज़ रफ्तार, प्रतिस्पर्धा, और मानसिक तनाव से जूझ रही है, क्या महावीर के जीवन से कोई मार्गदर्शन ले सकती है? आइए इस महावीर जयंती पर हम उनके जीवन को एक नई दृष्टि से देखें—एक ऐसी दृष्टि जिससे हर युवा, हर कार्यशील व्यक्ति, और हर जिज्ञासु आत्मा कुछ अद्भुत सीख सके।
१. डर से मुक्ति : ‘न भय, न भयभीत’
भगवान महावीर का सबसे बड़ा संदेश था—"अभय"। उन्होंने कहा- ‘जो दूसरों को डराता है, वह स्वयं सबसे अधिक भयभीत होता है।’ आज का समाज असुरक्षा, भय और चिंता से ग्रस्त है। महावीर हमें सिखाते हैं कि वास्तविक ताकत बाहरी प्रदर्शन में नहीं, बल्कि भीतर की निर्भीकता में है। सोचिए, यदि हम बिना किसी भय के जीवन जीना शुरू कर दें—लोग क्या कहेंगे ? असफलता का डर, खोने का भय—तो हम कितने मुक्त हो जाएंगे?
२. अहिंसा का गूढ़ अर्थ : ‘मन, वचन और कर्म में अहिंसा’
आज हम अहिंसा को केवल शारीरिक हिंसा से जोड़कर देखते हैं, लेकिन महावीर ने इसे व्यापक अर्थ में समझाया। किसी का अपमान करना, कटु वचन बोलना, क्रोध में आकर दूसरों को चोट पहुँचाना—यह भी हिंसा ही है। सोशल मीडिया पर किसी का मज़ाक उड़ाना, ट्रोल करना, झूठ फैलाना—यह भी हिंसा है। महावीर कहते हैं कि केवल हाथों से नहीं, बल्कि मन और वचन से भी अहिंसा का पालन करना चाहिए। क्या हम इस सत्य को अपने जीवन में उतार सकते हैं?
३. आत्मा की स्वतंत्रता : ‘तुम ही अपने भाग्य के विधाता हो’
आज हर कोई अपने भाग्य को कोसता है—'मेरे पास अवसर नहीं थे’, ‘मेरी परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं थीं’। लेकिन महावीर कहते हैं, ‘कोई भी बाहरी शक्ति तुम्हें बाँध नहीं सकती, जब तक तुम स्वयं अनुमति न दो।‘ क्या हम इस सोच को आत्मसात कर सकते हैं? क्या हम अपनी परिस्थितियों को कोसने के बजाय, अपनी आंतरिक शक्ति को पहचान सकते हैं? यदि हाँ, तो फिर कोई भी विपरीत परिस्थिति हमें नहीं रोक सकती।
४. संपत्ति का लोभ नहीं, संतोष की संपत्ति
आज हम भौतिक चीज़ों के पीछे भागते हैं—बड़ी कार, बड़ा घर, बड़ा बैंक बैलेंस। लेकिन क्या हमने कभी यह सोचा कि इन सब चीज़ों के बावजूद शांति क्यों नहीं मिलती? महावीर ने कहा था, ‘सच्ची संपत्ति संतोष है।’ क्या यह सीख आज के जीवन में सबसे अधिक प्रासंगिक नहीं है? जितना अधिक हम बाहरी चीज़ों में सुख खोजेंगे, उतना ही अधूरे रहेंगे। वास्तविक सुख भीतर से आता है, और यही महावीर की सिखाई गई सबसे महत्वपूर्ण कला है।
५. रिश्तों का असली अर्थ : ‘स्वयं को जानो, फिर दूसरों को समझो’
रिश्तों में तनाव क्यों बढ़ रहा है? क्योंकि हम दूसरों को बदलना चाहते हैं, लेकिन स्वयं को समझने का प्रयास नहीं करते। महावीर कहते हैं, ‘पहले खुद को जानो, फिर दुनिया तुम्हारे लिए बदल जाएगी।’
अगर हम इस एक बात को समझ लें, तो हर रिश्ता, हर संबंध मधुर हो सकता है। क्या हम इसे अपनाने के लिए तैयार हैं?
६. धैर्य और सहनशीलता : ‘हर चीज़ का समय आता है’
आज की दुनिया ‘इंस्टेंट ग्रेटिफिकेशन’ चाहती है—सबकुछ तुरंत! लेकिन महावीर कहते हैं, ‘जो अपने धैर्य को खोता है, वह अपनी सबसे बड़ी शक्ति को खो देता है।’ सोचिए, अगर हम थोड़े और धैर्यवान हो जाएँ, तो कितने बड़े परिवर्तन संभव हो सकते हैं?
७. आध्यात्मिक जागरूकता : ‘आत्मा को जानो, तभी सत्य को समझोगे’
महावीर कहते हैं, "जो आत्मा को जानता है, वही सत्य को समझ सकता है।" आज की दुनिया में आत्मिक शांति की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। लोग बाहर की दुनिया को बदलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन महावीर हमें भीतर की यात्रा पर ले जाने का मार्ग दिखाते हैं। यदि हम आत्मा को समझ लें, तो बाहरी संसार की हर समस्या छोटी लगने लगेगी।
८. पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता
भगवान महावीर ने केवल मनुष्यों के प्रति नहीं, बल्कि प्रकृति और पशु-पक्षियों के प्रति भी करुणा का संदेश दिया। आज जब दुनिया जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और प्राकृतिक संसाधनों की कमी से जूझ रही है, महावीर का "संयम से जियो और जीने दो" का सिद्धांत और अधिक प्रासंगिक हो जाता है। क्या हम इस सीख को अपनाकर एक अधिक संवेदनशील और संतुलित जीवन जी सकते हैं?
महावीर का संदेश: अब या कभी नहीं!
महावीर के उपदेश केवल अतीत की बातें नहीं, बल्कि भविष्य की रोशनी हैं। यह हमारे हाथ में है कि हम इसे केवल प्रवचन समझें या फिर अपने जीवन का अमूल्य सत्य।
यदि तनाव से मुक्त होना है, तो अहिंसा और संतोष को अपनाएँ।
यदि आत्मविश्वास चाहिए, तो निर्भीक बनें।
यदि मानसिक शांति चाहिए, तो स्वयं को पहचानें।
यदि रिश्तों में प्रेम चाहिए, तो दूसरों को समझने का प्रयास करें।
अंतिम प्रश्न: क्या हम महावीर को जी सकते हैं?
महावीर जयंती पर मिष्ठान बांटने और शोभायात्रा निकालने से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हम उनके विचारों को अपने जीवन में उतारें। क्या हम इस महावीर जयंती से एक संकल्प ले सकते हैं कि उनके विचारों को मात्र ग्रंथों में नहीं, बल्कि अपने जीवन में जिएँगे?
यह लेख सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि आत्मसात करने के लिए है। और यदि एक भी विचार आपको अंदर से झकझोर दे, तो समझ लीजिए कि महावीर आज भी जीवित हैं—हमारे भीतर, हमारी आत्मा मे।