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करुणा के अजस्र स्रोत भगवान महावीर
भगवान महावीर अध्यात्म जगत के महासूर्य थे। उनके तेजस्वी आभावलय ने सारे विश्व को नई दिशा और अभिनव दशा प्रदान की। वे एक त्यागवीर और तपोवीर थे। वे एक धर्मवीर और कर्मवीर थे। वे सत्यवीर और क्षमावीर थे। वे परमवीर और महावीर थे। गंगा पाप का, चंद्रमा ताप का एवं कल्पवृक्ष संताप का नाश करता है। भगवान महावीर जनजीवन के पाप, ताप और संताप का निवारण करने इस धरा पर आए। भारत का भला महाभारत से नहीं, त्याग और तप की इबादत से संभव है। भगवान महावीर इस पावन पवित्र वसुंधरा पर ज्योतिर्मय तपोमय त्यागमय संदेश देने आए। महात्मा गांधी के तीन बंदर कहते हैं बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो। भगवान महावीर उच्चकोटि का सुपरविजन देने वाले सुपरवाइजर थे उन्होंने कहा - बुरा मत सोचो।
क्षत्रिय कुंडग्राम के राजप्रासाद में चौदह सपनों का सिगनल देते हुए एक राजकुमार का जन्म हुआ। महारानी त्रिशला और राजा सिद्धार्थ का प्रांगण एक अद्भुत शिशु के आगमन से रोमांचित, प्रफुल्लित और उल्लसित था । बहन सुदर्शना और भाई नंदीवर्धन के हर्ष का कोई ओर छोर नहीं था। पूरा क्षत्रिय कुंडग्राम दिव्य शिशु के दिव्य आभामंडल में देदीप्यमान था। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी का दिन धन्य कृतपुण्य था।
आजकल अक्सर बच्चों का जन्म हॉस्पिटल में होता है। उनका बचपन हॉस्टल में और जवानी का दुर्लभ समय होटल में बोटल के नशे के साथ तबाह हो जाता है। भगवान इन सबके अपवाद थे। एक संस्कार संपन्न वातावरण में रहे। जहां आम आदमी फास्ट लाइफ में भागता जा रहा है, फास्ट फूड, जंक फूड, पेक फूड से टेंशन, डिप्रेशन का शिकार हो रहा है। भगवान महावीर यूनीक वैल्यू के साथ जीते रहे। उन्होंने हाई प्रोफाईल लाईफ को जीने के लिए मिगसर कृष्ण दशमी को एक नए राजमार्ग को स्वीकार किया। साधना के सोपान पर आरोहण किया।
भगवान महावीर का जीवन दर्शन विशिष्टताओं का समवाय था। दया, अहिंसा, सद्भावना, समता, सहिष्णुता महापुंज को खास और खूबसूरत बनाती रही। उनकी जीवन शैली के ग्राफ को सर्वोत्तम बनाने वाली एक क्वालिटी है - महाकरूणा की चेतना का विकास। करुणा, अनुकंपा उनके रोम-रोम में बसी थी। जब शिशु गर्भ में आया तब उन्होंने सोचा मेरे हलन-चलन से मेरी मॉं को कष्ट होता है। तब प्रभु महावीर ने हिलना डुलना बंद कर दिया। ध्यानयोगी बनकर गर्भ में अवस्थित हो गए। बाह्य जगत में मां की पीड़ा को देखकर महावीर ने पुनः हलन चलन के साथ एक संकल्प लिया- मैं माता-पिता के जीवन काल में संन्यास ग्रहण नहीं करूंगा। यह करुणा के अजस्र स्रोत महावीर के जन्म-जन्मान्तर के पुण्यों का महाप्रमाण था।
दृष्टि विष चंडकौशिक ने भगवान को तीन बार डंक लगाया। उसके सब प्रयत्न विफल हो गए। वह थककर चूर हो गया। भगवान के सामने खिन्न होकर बैठ गया। भगवान ने प्रशान्त और मैत्री से ओतप्रोत दृष्टि उस पर डाली कि उसके रोम-रोम में शांति और सुधा व्याप्त हो गयी। यह है अहिंसा की प्रतिष्ठा और मैत्री की विजय।शूलपाणि यक्ष ने महावीर को कष्ट देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संगम देवता ने एक रात में बीस मारणांतिक कष्ट देकर महावीर को परास्त करना चाहा। आदिवासी लोगों ने भरपूर परिषह उत्पन्न किए पर महावीर की शांति को कोई भंग नहीं कर सके। भगवान अहिंसा के महास्रोत थे। उन्होंने ध्यानयोग, तपोयोग से अपने चित्त को मैत्री भावना से इस कदर भावित कर लिया कि वे संपूर्ण मानव जाति के लिए मैत्री का निर्झर बहाते रहे।
एक अच्छंदक तपस्वी ज्योतिष, वशीकरण, मंत्र-तंत्र आदि विधाओं में कुशल था। मोराक सान्निवेश में उसकी बहुत प्रसिद्धि थी। जनता उसके चमत्कारों से प्रभावित थी। पर वह महावीर की अध्यात्म चेतना के सामने टिक नहीं सका। उसने कहा- भंते! आप सर्वत्र पूज्य हैं। आपका व्यक्तित्व विशाल है। महान् व्यक्तित्व क्षुद्र व्यक्तित्वों को ढांकने के लिए नहीं होते। मुझे आशा है कि भगवान मेरी भावना का सम्मान करेंगे। भगवान की करुणा इतनी विराट थी कि भगवान ने वहां से प्रस्थान कर दिया।
राजकुमारी चन्दनबाला को बंधन मुक्ति की दिशा में प्रस्थित करने के लिए भगवान ने तेरह अभिग्रह स्वीकार किए और दास प्रथा की बेड़ियों को धराशायी कर दिया। यह अनुकंपा की भावना का अदम्य अदाहरण है। नारी के बंध विमोचन से महिला जगत को भगवान ने उज्जवल भविष्य प्रदान किया।
भगवान को कहीं बंदी बनाया गया कहीं वंदना की गयी। सात बार फांसी के फंदे पर लटकाया गया पर भगवान सहज शांति की सरिता में निष्णात होकर विहार कर रहे थे।
अहिंसा के हिमालय पर हिंसा का वज्रपात गोशालक ने किया। पर वह महावीर को विचलित नहीं कर सका। ‘अभी सोलह वर्ष तक जीवित रहूंगा’, ऐसी थी सार्वभौम वीतरागता की पराकाष्ठा भगवान महावीर की। उन पावन चरणों में रोहिणेय आए, अर्जुनमाली आए, सुदर्शन आए, हरिकेश आए, बड़े-बड़े राजा महाराजा आए, श्रेष्ठी-सामंत आए और महावीर की अनुशासना में आश्वस्त-विश्वस्त हो गए। ईगो प्रॉब्लम, अपसेट मूड, टेंशन ऐसे इंफेक्शन है जिन्हें दूर करने के लिए प्रभु महावीर ने एंटीबायोटिक डोज मेडिसिन के रूप में दी। वह डोज है मेडिटेशन जो नेगेटिव एटीट्यूड को दूर करती है। पॉजिटिव एटीट्यूड को बढ़ाती है। बी कॉन्फिडेंट रहने का गुड सीक्रेट देती है। हर इंसान को वह Good, Great और God बना सकती है।
हम महावीर को पढे़ जाने और जीने का प्रयास करें।
1. महावीर को जानने के लिए हम अपनी अन्तर्दृष्टि जगाएं।
2. करुणा की अजस्र धार से शम उपशम की मिसाल बन जाए।
3. सद्भावना से नए युग की मशाल बन जाएं।
4. काम ऐसा कर दिखलाए कि बदलते समाज के भाल बन जाएं।