
गुरुवाणी/ केन्द्र
संयम, सदाचार और नैतिकता से युक्त हो जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण
तीर्थंकर के प्रतिनिधि, संयम स्वराज्य के साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी झंडाला के प्राथमिक विद्यालय पधारे। अमृतमयी देशना प्रदान करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि मनुष्य के व्यवहार में धर्म की उपस्थिति होनी चाहिए। जैसे पानी में चीनी मिल जाए तो उसका स्वाद मधुर हो जाता है और यदि उसमें नमक मिल जाए तो वह खारा हो जाता है—वैसे ही व्यवहार भी धर्म से जुड़ जाए तो वह मधुर, पुण्यकारी और कल्याणकारी हो जाता है, और यदि उसमें हिंसा, झूठ, बेईमानी आदि मिल जाए तो वह अधार्मिक और पापमय बन जाता है।
साधु का जीवन तो पूर्णतः धर्ममय होता है, परंतु गृहस्थों का जीवन भी यदि संयम, सदाचार और नैतिकता से युक्त हो, तो वह उत्तम हो सकता है। जैसे किसी शुद्ध साधु को सुपात्र दान देना का प्रयास होना चाहिए। सांसारिक जीवन में जितना संभव हो सके, कोई आ जाए तो उसकी मदद का भी प्रयास किया जा सकता है।रहीम का दोहा उद्धृत करते हुए पूज्यवर ने कहा- 'रहिमन वे नर मर चुके, जो कोई मांगन जाय।
उनसे पहले वे मरे, जिन मुख निकसत नाय।।' गुरुजनों के प्रति श्रद्धा और
विनय रखें, तथा सभी प्राणियों के
प्रति करुणा और दया का भाव रखें। पूज्यवर ने कहा -
'तुलसी दया न पार की, दया आपकी होय।
तूं किण न मारे नहीं, तने न मारे कोय।।'
न्यायपूर्ण वृत्ति अपनाएं, ईमानदारी को जीवन में स्थान दें और दूसरों के आध्यात्मिक कल्याण की भावना रखें। परोपकार पुण्य है और परपीड़ा पाप। ज्ञान, धन, शक्ति, रूप या सत्ता का घमंड नहीं करना चाहिए और न ही उनका दुरुपयोग करना चाहिए। सत्संग और सत्साहित्य का संपर्क आत्मिक विकास के लिए आवश्यक है। संतों का दर्शन और संग ही अपने आप में दुर्लभ और पुण्यप्रद है। बुरी संगति से बचें और अच्छी संगति अपनाएं—उससे उत्तम संस्कार विकसित होते हैं।
84 लाख योनियों में मानव जीवन दुर्लभ है, उसका सदुपयोग करना चाहिए। कुछ लोग जीवन नैया को तट पर आकर भी डुबा देते हैं। इसलिए धर्म के मार्ग पर चलना आवश्यक है। विद्यालयों में बच्चों को संस्कारयुक्त शिक्षा मिलनी चाहिए ताकि वे सुसंस्कारित नागरिक बन सकें। पूज्यवर के स्वागत में वैभव शाह, पायल शाह, झंडाला के सरपंच पोपट भाई ठाकोर, अंबादान भाई गढ़वी, सरस्वती नगर स्कूल से भरत भाई मकवाणा एवं झंडाला प्राथमिकशाला के जीतूभाई पटेल ने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। कांतिभाई शाह और केशव भाई शाह ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।