मानव जीवन का अधिकतम उपयोग हो साधना के लिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

रोजू। 3 अप्रैल, 2025

मानव जीवन का अधिकतम उपयोग हो साधना के लिए : आचार्यश्री महाश्रमण

आत्म साधना के विशिष्ट साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी कच्छ जिले की सीमा को पार कर लगभग 16 किलोमीटर का प्रलम्ब विहार करते हुए पाटन जिले के रोजू स्थित अमृत कलापूर्ण तीर्थ विहार धाम में पधारे। उपाश्रय में उपस्थित जनमेदिनी को मंगल देशना प्रदान कराते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि जैन ग्रन्थों में आगम वांग्मय का विशिष्ट महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे यहां 32 आगम प्रतिष्ठा प्राप्त हैं। उनमें एक आगम है- उत्तराध्ययन। यह 36 अध्ययनों वाला आगम है। इसमें तत्व बोध संबंधी जानकारियां भी दी गई है तो आध्यात्मिक साधना का दिशा-निर्देशन भी मानो किया गया है।
इस आगम का दसवां अध्ययन छोटा सा है, किन्तु 'समयं गोयम ! मा पमायए' यह एक चौथा चरण बार-बार श्लोकों के अन्त में आता है। इसी अध्ययन के श्लोक में कहा गया है कि मनुष्य जन्म दुर्लभ है। लंबे काल तक यह मनुष्य जन्म कई प्राणियों को नहीं मिलता है। यह मनुष्य जन्म जो दुर्लभ है, अभी हमें प्राप्त है। गौतम के नाम संदेश दिया गया है कि समय मात्र प्रमाद मत करो। कितने प्राणियों को तो आज तक यह दुर्लभ मानव जीवन मिला भी नहीं है। अनन्त काल हो गया और उन्होंने जन्म भी ले लिए पर मुनष्य जन्म नहीं मिला।
मानव जीवन में साधुपन आ जाये तो वह इसे सार्थक बनाने का उत्कृष्ट उपाय है। गृहस्थ जीवन में धार्मिक साधना कर अन्तर्मन से भक्ति कर इसे सार्थक बनाया जा सकता है। नवकार मंत्र का जप करें, गुरु भक्ति करें, गुरु की पर्युपासना करें। गुरु के तो मौन से भी कुछ प्राप्त किया जा सकता है। प्राणियों के प्रति सत्वानुकंपा रखें। साधु तो क्षमा-करूणा मूर्ति होते हैं। साधु को सुपात्र दान दें। गुणानुवाद करें, गुणों की पूजा-सम्मान करें। गुणग्राही बनें। शास्त्रों की वाणी सुनें। साधुओं से प्रवचन सुनें। भौतिकता में रहकर भी अध्यात्म की साधना करें। इच्छाओं का संयम करें। यों हमारा मानव जीवन सुफल-सफल बन सकता है। हमारा परम लक्ष्य तो मोक्ष है, पर जब तक मोक्ष न मिले, दुर्गति में तो न जाना पड़े। धर्म के रास्ते पर चलेंगे तो दुर्गति से बचाव हो सकता है। पाप के मार्ग पर न चलें। नरक-निगोद में न जाना पड़े। एक सम्यक्त्व आने से कितनों से छुटकारा मिल सकता है। पूज्यवर के स्वागत में उपाश्रय से अजीतसिंह ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।