आस्था से कम हो सकती है विचार और आचार की दूरी : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मोडा। 1 अप्रैल , 2025

आस्था से कम हो सकती है विचार और आचार की दूरी : आचार्यश्री महाश्रमण

भैक्षव शासन सम्राट आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 12 किमी का विहार कर फतहगढ़ से मोडा की प्राथमिक शाला में पधारे। आस्था के महासागर आचार्य प्रवर ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में श्रेयस्कर क्या है ? और अहितकर क्या है ? इस पर हमारा ध्यान जाना चाहिए - कौन से कार्यों, आचरणों, और विचारों से आत्मा का कल्याण हो सकता है ? कौन से विचारों-आचारों से आत्मा का पतन-नुकसान हो सकता है। व्यक्ति सद्विचार और सदाचार रखे। दुर्विचार और दुराचार आत्मा के लिए नुकसानदायी होते हैं। विचार और आचार का भी एक संबंध होता है। आदमी की विचारधारा, सिद्धान्त अच्छे होते हैं तो आचरणों में भी वैसा प्रभाव पड़ सकता है। आस्था अच्छी है तो आचार अच्छा हो सकता है। आस्था ठीक नहीं है तो विचार अलग तरह का होगा।
सद्विचार है तो सदाचार का मार्ग अच्छा बन सकता है। व्यक्ति का दर्शन सम्यग् रहे। फिर सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र हो सकता है। सम्यग् दृष्टिकोण से व्यक्ति जान सकता है कि कर्म बुरे करेंगे तो उनका फल भी बुरा होगा। जीवन में सम्यक्त्व है तो एक बड़ी सम्पति मिल गई। गृहस्थ को सांसारिक काम भी करने पड़ते हैं पर दृष्टिकोण सही है तो वह बुरे काम करने से बचेगा। महाव्रतों की साधना न हो सके पर अणुव्रतों का पालन करें। भावना है तो यहां नहीं तो आगे दीक्षा आ सकती है। परिग्रह के प्रति आसक्ति और परिवार के प्रति मोह को कम करें। आसक्ति और मोह की भावना कर्म बन्ध कराने वाले हैं। जीवन में संयम रखें, स्वाद और विवाद में ज्यादा नहीं जाना चाहिये। अस्वाद और संवाद करें। सिद्धान्त और धार्मिक चर्चा करें, फालतू विवाद न करें। दृष्टिकोण, विचार और आस्था अच्छी है तो जीवन में अच्छे रूप में परिवर्तन हो सकता है। मानव जीवन मिला है, इससे धर्म का उत्थान, धर्म की साधना करे। आत्मा के कल्याण की दिशा में आगे बढ़ें। पूज्यवर के स्वागत में मोडा जैन संघ से वाड़ी भाई मेहता, मोडा प्राथमिक शाला से जितेन्द्र भट्ट ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।