जीवन में ज्ञान और साधना का हो विकास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आडेसर। 2 अप्रैल, 2025

जीवन में ज्ञान और साधना का हो विकास : आचार्यश्री महाश्रमण

जिनशासन सरताज आचार्यश्री महाश्रमणजी मोडा से लगभग 13 किमी का विहार कर आडेसर पधारे। अमृत देशना प्रदान कराते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्व है। जगह-जगह शिक्षालय मिलते हैं, ये संस्थान ज्ञान प्रदान के माध्यम है। अनेकों विद्यार्थी ज्ञान का आदान करते है और अनेकों शिक्षक ज्ञान को प्रदान करते हैं। शास्त्र में कहा गया है - सदा स्वाध्याय में रत रहो। जितना समय हो यथासंभवतया रोज स्वाध्याय करें। ज्ञान एक पवित्र तत्व है। ज्ञान दो प्रकार के हो सकते हैं - अध्यात्म विद्या का ज्ञान और लौकिक विद्या का ज्ञान। ज्ञान दोनों ही उपयोगी हैं। ज्ञान में आगे बढ़ना है तो आदमी अपने अज्ञान को भी पहचानने का प्रयास करें। अज्ञान को पहचानने वाला ही सबसे बड़ा ज्ञानी है। दुनिया में अनेक संत-व्यक्तित्व ज्ञानी मिल सकते हैं। अलग-अलग विषयों के विशेषज्ञ मिल सकते हैं।
केवलज्ञान होने पर अज्ञान बिलकुल ही नहीं रहेगा। ज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त होता है। अज्ञान को भी क्षयोपशम कहा गया है। अज्ञान भी दो प्रकार का होता है - एक ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से होने वाला और दूसरा ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होने वाला। मति, श्रुत और विभंग अज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होने वाला, उज्जवलता से मिलने वाला अज्ञान है। यहां ज्ञान का अभाव नहीं है। ये तो मिथ्यात्वी के पास है, इसलिए अज्ञान संज्ञा कहा गया है। ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से होने वाला अज्ञान है, वहां ज्ञान का अभाव है। जैसे सम्यक्त्वी है, उसमें ज्ञान तो है पर केवलज्ञान का, मनः पर्यव ज्ञान, अवधिज्ञान का अभाव है। केवलज्ञान हो गया तो सम्पूर्ण ज्ञान हो गया। अज्ञान का अंधकार कम हो और ज्ञान का प्रकाश बढ़ता रहे और इसके लिए सदा स्वाध्याय में रत रहें। ग्राहक बुद्धि से, समीक्षात्मक बुद्धि से पढ़ने का, स्वाध्याय करने का प्रयास करें तो ज्ञान और क्लीयर हो सकता है। तर्क और प्रश्न हो तो ज्ञान और खुल सकता है।
अनेक ग्रन्थों में तत्व ज्ञान भरा है। ज्ञान एक प्रकाश है, अज्ञान अंधकार है। विद्या खुद सरस्वती है। साधु के तो ज्ञान और साधना धन है। तप, योग साधना, उपशम की साधना धन है, परिग्रह का भार कम हो जाये। आचार्यश्री ने सेवा साधक श्रेणी के संदर्भ में प्रेरणा देते हुए कहा कि सेवा के साथ साधना को ही अपना आभूषण बनाने का प्रयास करें। इस श्रेणी के लोग सेवा और साधना का विकास करते रहने का प्रयास करें। हमारे जीवन में ज्ञान और साधना का विकास हो यह काम्य है। पूज्यवर के स्वागत में आडेसर कुमार शाला के प्रिंसिपल महेन्द्र भाई ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।