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संयम की कसौटी पर खरा उतरे वह धर्म
गंगाशहर। भिक्षु अभिनिष्क्रमण दिवस पर मुनि कमल कुमार जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु सिद्ध पुरुष थे, उन्होंने व्यक्तियों को नहीं, सिद्धांतों को महत्व दिया। सिद्धांतों के साथ सत्य के लिए विक्रम संवत 1817 चैत्र सुदी नवमी को अभिनिष्क्रमण किया। शुद्ध साधु जीवन पालन करना ही उनका मुख्य लक्ष्य था। उनका संकल्प बहुत मजबूत था। हमारे दिल दिमाग में आचार्य भिक्षु के सिद्धांत प्रति क्षण बने रहें और हमारा कर्तव्य भी है कि आचार्य भिक्षु के दर्शन को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करते रहे। अहिंसा- संयम-तप आचार्य भिक्षु की दर्शन क्रांति के मुख्य आधार थे। आज भी इन सिद्धांतों के बल पर धर्म संघ आगे बढ़ रहा है। आचार्य भिक्षु के संघर्ष द्रौपदी के चीर की तरह थे फिर भी आचार्य भिक्षु ने समता से उन्हें सहन किया। भगवान महावीर की वाणी को सरल भाषा में आम जनता को प्रतिबोध दिया। आचार्य भिक्षु के पास धर्म और धर्म की कसौटी थी - संयम और असंयम। जो कार्य संयम की कसौटी पर खरा उतरे वह धर्म और खरा ना उतरे वह अधर्म। मुनि श्रेयांश कुमार जी ने मुक्तक के माध्यम से अपनी भावांजलि व्यक्त कर कहा कि आज दिन मुनि विमलविहारी जी को संयम जीवन के 32 वर्ष पूरे हो गए। मुनि प्रबोधकुमार जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु सत्य के पुजारी थे। सत्य का अन्वेषण करना उनके जीवन का परम लक्ष्य था। सत्य की खोज में आचार्य भिक्षु ने अनेक संघर्षों का सामना किया। उनका मुख्य घोष था 'आत्मा रा कारज सारसा, मर पूरा देसां'। हमें आचार्य भिक्षु के गुणों की आराधना करनी चाहिए। मुनि विमलविहारी जी ने कहा कि आज से 265 वर्ष पूर्व आचार्य भिक्षु ने बगड़ी से किसी विशेष प्रयोजन से प्रस्थान किया जो अभिनिष्क्रमण कहलाया। साधु जीवन में उन्होंने इतना कष्ट उठाया फिर भी वे हमेशा सत्य की लौ को जगाते रहे। मुनिश्री ने अपनी दीक्षा से सम्बंधित संस्मरण प्रस्तुत किया। मुनि मुकेश कुमार जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु की बुद्धि विलक्षण व तेज थी। वे सरल तरीके से जवाब देते थे। मुनि नमि कुमार जी ने कहा कि आज का दिन तेरापंथ धर्म संघ के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन है। आज के दिन के कारण ही हमें तेरापंथ का नंदनवन मिला। आचार्य भिक्षु ने सिद्धांतों और मर्यादाओं के लिए नया पथ चुना। इस अवसर पर 21 से अधिक वक्ताओं ने भाषण, गीतिका, कविता, मुक्तक आदि के माध्यम से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी।