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श्रावक की चौथी प्रतिमा का हुआ स्वीकरण
आचार्य श्री महाश्रमण की सुशिष्या साध्वी डॉ. गवेषणाश्री जी के सान्निध्य में 'चौथी पडिमा प्रत्याख्यान' का भव्य कार्यक्रम रमेश संचेती के निवास के विशाल प्रागंण में रखा गया। माधावरम, चेन्नई से समागत माणकचंद रांका ने श्रावक की चौथी प्रतिमा स्वीकार की। साध्वी डॉ. गवेषणाश्रीजी ने कहा - जैन आगमों में अनेक प्रकार की श्रावक की भूमिकाओं का वर्णन आता है, जैसे सुलभ बोधि श्रावक, पडिमाधारी श्रावक आदि। पडिमाधारी का अर्थ है- प्रतिज्ञा या अभिग्रह। साधना की दृष्टि से विशेष प्रकार की प्रतिज्ञा स्वीकार कर निश्चित कालावधि तक उनका पालन किया जाता है। जैन आगमों में पड़िमा को 3 भागों में वर्गीकृत किया है, प्रथम छः पडिमाओं को धारण करनेवाला उत्कृष्ट श्रावक, सात से नौ तक ब्रह्मचारी और शेष दो धारण करने वाला भिक्षुक कहलाता है। माणकचंद रांका आज तीसरी पडिमा संपन्न कर चौथी पडिमा स्वीकार कर रहे है। ये प्रेक्षा प्रशिक्षक, सेवाभावी, श्रद्वाशील और निःस्पृह साधक है।
साध्वी मेरुप्रभाजी ने जीवन-चरित्र से संबंधित गीतिका प्रस्तुत की। साध्वी दक्षप्रभा जी ने पडिमा से संबंधित भावपूर्ण सुमधुर संगान किया। केशर रांका एवं चेतना रांका ने विचार रखे। कार्यक्रम की शुरुआत सुजाता संचेती परिवार के मंगलाचरण से हुई| स्वागत भाषण रमेश संचेती ने दिया। तेरापंथ सभा अध्यक्ष सुशील संचेती, चैन्नई से समागत सुरेश रांका, निष्ठा रांका, कुलदीप रांका ने अपने विचार रखें। युवक परिषद् से अभिनन्दन नाहटा, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम से वीरेन्द्र घोषल, सभामंत्री हेमंत संचेती, महिला मंडल मंत्री सुशीला मोदी ने विचार रखे। बाबुलाल बैद ने अभिनन्दन पत्र का वाचन किया। धन्यवाद ज्ञापन विनोद संचेती ने किया।