अध्यात्म विकास का एक पहलू -  आत्मानुशासन : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

वाव। 14 अप्रैल, 2025

अध्यात्म विकास का एक पहलू - आत्मानुशासन : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 10 किमी का विहार कर नौ दिवसीय प्रवास हेतु वाव के तेरापंथ भवन में पधारे। आचार्यश्री के शुभागमन के साथ ही वाव में बने ‘महाश्रमण द्वार’ का भी लोकार्पण हुआ। ‘वर्धमान समवसरण’ में दिव्य पुरूष ने अमृत देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि व्यक्ति दुःख मुक्त रहना चाहता है। सुखी जीवन उसे इष्ट होता है। प्रश्न होता है कि व्यक्ति दुःखों से मुक्त कैसे रह सकता है? शास्त्र में बताया गया है कि जन्म, जरा, व्याधि और मृत्यु दुःख है। संसार में कितना दुःख है, जहां प्राणी संकलिष्ट रहते हैं। व्यक्ति सुख पाने के लिए प्रयास करता है। भौतिक सुखों में लिप्त होता है, जिससे परिणाम बाद में दुःख का आ सकता है।
एक पदार्थों से मिलने वाला सुख होता है, वह थोड़ी देर का आभास है। उसके रस, गंध, स्पर्श जो पदार्थ जन्य सुख है, वह अस्थायी हैं, सुख का आभास है। उसके परिणाम में दुःख आ सकता है। इस अल्पकालिक सुख में आसक्ति है तो बाद में दुःख पैदा हो सकता है जैसे किम्पाक फल का सेवन। दुःखों से छुटकारा पाना है तो अपने आप का संयम करो। जो आत्मा दांत होती है, वह इस लोक में भी सुखी होती है और परलोक में भी सुखी बन सकती है।
व्यक्ति स्वयं का संयम करता है, इसमें भलाई है। स्वयं स्वयं पर अनुशासन न करे तो दूसरों के अनुशासन में रहना पड़ सकता है। एक आत्मानुशासन है, दूसरा परानुशासन है। स्वयं का निग्रह कर लिया, संतोष कर लिया, मन में लालसा नहीं है वह सुखी रहता है। लोभ दुःख का कारण है। जब संतोष का धन प्राप्त हो जाता है तो शेष सारे धन बेकार जैस लगने लग जाते हैं। जब हमारा मन वश में हो जायेगा तो हम सबको वश में कर सकते हैं। दूसरों पर अनुशासन करने वाला पहले स्वयं अनुशासित हो। हमारे मन की चंचलता ज्यादा न रहे। प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष चल रहा है। ध्यान के द्वारा मन को नियंत्रण में लाने का प्रयास किया जा सकता है।
आज नेपाल देश का नये वर्ष का दिन है। पूज्यवर ने नेपाली जनता के लिए मंगलपाठ सुनाने की कृपा करवायी। नेपाल में अनेक श्रावक-श्राविकाएं रहने वाले हैं। नेपाल में भी शांति रहे, अहिंसा-ईमानदारी के संस्कार विकसित होते रहें, जीवन में सत्पुरूषार्थ करते रहें। पूज्यवर ने आगे फरमाया - जो महापुरूष होते हैं, उनकी वाणी तो सब के लिए कल्याणकारी हो सकती है। हम आचार्यश्री भिक्षु की उत्तरवर्ती परम्परा से हैं, आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत का अवदान दिया था तो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने प्रेक्षाध्यान का अवदान दिया था। आज वाव आये हैं, जहां कभी गुरुदेव तुलसी पधारे थे। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी भी वाव पधारे थे, अक्षय तृतीया का आयोजन हुआ था। मेरा भी एक बार आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के साथ और बाद में 2013 में आना हुआ था। इस मौके पर वाव के प्रायः सभी लोग आ गये हैं। सबको आध्यात्मिक सुख मिले, वह सुख त्याग से मिल सकता है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि वाव पर आचार्यों की कृपा रही है तो वाव के श्रावकों ने भी संघ के लिए श्रम किया है। यहां श्रावकों की श्रद्धा दिखाई पड़ती है। आचार्यों के प्रति विनय का भाव है। गुजरात में तो आचार्यवर अमृत बरसा रहे हैं। आचार्य उपायज्ञ होते हैं। दुःख मुक्ति का उपाय बताते हैं। अधूरे ज्ञान को पूरा करने वाले गुरु होते हैं। गुरु हमें जीवन के रहस्यों को समझाने वाले होते हैं। हमें प्रकाश की ओर ले जाने वाले होते हैं। पूज्यवर के स्वागत में वाव पथक के संयोजक विनीत भाई सिंघवी, तेरापंथ महिला मंडल, मूर्तिपूजक समाज से भीखाभाई डोशी, दीपाभाई डोशी, थराद त्रिस्तुति जैन संघ के ट्रस्टी जयंती भाई वकील, रावले से राणा गजेन्द्रसिंह, आदि ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।