
गुरुवाणी/ केन्द्र
सत्य बोलने का साहस ना हो तो झूठ भी नहीं बोलें : आचार्यश्री महाश्रमण
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण लगभग 11 किमी का विहार कर दो दिवसीय प्रवास हेतु वाव क्षेत्र के माडका स्थित तेरापंथ भवन पधारे। युगदृष्टा ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में 84 लाख जीव योनियां बताई गई हैं। अनंत जीव इस संसार में हैं, उनमें से अनंत जीव सिद्ध गति को प्राप्त हो चुके हैं और अनंत जीव मोक्ष को प्राप्त करने वाले हो सकते हैं। जो जीव मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं, वे 84 लाख जीव योनियों से मुक्त हो चुके हैं।
जो संसारी जीव हैं, वे इन 84 लाख जीव योनियों में ही भ्रमण कर रहे हैं। मनुष्य योनि भी उन्हीं में एक है। जीव संसार में भ्रमण करते-करते मानव योनि को प्राप्त कर सकते हैं। मानव जीवन अत्यंत महत्वपूर्ण और दुर्लभ जन्म होता है। जो इस मानव जीवन को पाकर इसे व्यर्थ गंवा देता है, वह जीवन की अनंतकालिक यात्रा में बड़ी भूल कर सकता है। पापों में लिप्त होकर इस मानव जीवन को गंवा देना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। मानव जीवन प्राप्त करना कठिन और दुर्लभ है, जो हमारे लिए अभी सुलभ है। अतः हमें इस जीवन को सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए।
कई व्यक्ति साधु बनकर इसे सफल बना लेते हैं। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी व्यक्ति धर्म की साधना कर सकता है। गृहस्थ जीवन में भी मानव जीवन को सफल बनाने के लिए ईमानदारी से व्यवहार करना चाहिए। झूठ, चोरी और छल-कपट ईमानदारी के विरोधी तत्व हैं। इनसे जीवन को मलिन नहीं बनाना चाहिए। अशुद्ध पैसे को घर में स्थान नहीं देना चाहिए। कहा गया है—
“साच बरोबर तप नहीं, झूठ बरोबर पाप।
जाके हिरदे साच है, ता हिरदे प्रभु आप।।“
यदि सत्य बोलने का साहस नहीं है, तो झूठ भी मत बोलो—मौन रखो। व्यक्ति को झूठ और कपट से बचने का प्रयास करना चाहिए। सच्चाई का रास्ता साफ होता है। सच बोलने वाले को कोई भय नहीं रहता। सच्चाई का पालन करने वाले के सामने संघर्ष या परेशानी आ सकती है, परंतु सच्चाई कभी परास्त नहीं होती। जीवन में ईमानदारी के साथ हर किसी के प्रति मैत्रीभाव होना चाहिए। नशीली चीजों के सेवन से बचना चाहिए। आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज माडका आना हुआ है। माडका में पहले भी आना हुआ था। आचार्यश्री ने उपस्थित माडका के श्रद्धालुओं ने सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रतिज्ञाओं को स्वीकार करने का आह्वान किया तो समुपस्थित जनता ने उन प्रतिज्ञाओं को सहर्ष स्वीकार किया। पूज्यवर ने परिख परिवार में अच्छी धार्मिक भावना बनी रहने का आशीर्वाद प्रदान करवाया।
साध्वीप्रमुखाश्री ने फरमाया कि आचार्यश्री गुजरात का भ्रमण करते हुए जन-जन को संभाल रहे हैं। जहां आचार्यवर पधारते हैं, वहां श्रद्धा का प्रवाह बहने लगता है। गुरु के घर-आंगन में पधारने पर श्रावकों को सुख की अनुभूति होती है। व्यक्ति सुख से रहने के लिए वर्तमान में रहे। जिसके मन में सुख-शांति है, वही वास्तव में सब कुछ प्राप्त कर चुका होता है। सुखी वही होता है, जो अपनी आत्मा का दमन करता है, इन्द्रियों और मन को अपने वश में रखता है।
पूज्यवर के स्वागत में माडका तेरापंथी सभा के अध्यक्ष हंसमुख भाई परीख, पूर्व सरपंच गुमानसिंह चौहान, मूर्तिपूजक समाज से विमल मेहता, हिम्मतभाई डोसी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। उपासक विशाल परीख ने मुमुक्षु बनने की भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। पूज्यवर ने महत्ती कृपा कर उन्हें मुमुक्षु के रूप में साधना करने की स्वीकृति प्रदान की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।