साधुत्व से बड़ी कोई डिग्री नहीं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

वासरडा। 11 अप्रैल, 2025

साधुत्व से बड़ी कोई डिग्री नहीं : आचार्यश्री महाश्रमण

मर्यादा पुरूषोत्तम आचार्यश्री महाश्रमणजी भाभर से विहार कर वासरडा पधारे। पूज्यवर ने अमृत देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि दुनिया में मनुष्य है, पशु एवं और भी छोटे-छोटे अनेक प्रकार के प्राणी हैं। इन सब में मनुष्य एक उत्तम कोटि का प्राणी प्रतीत हो रहा है क्योंकि साधना की उत्तम भूमिका पर मनुष्य ही आरूढ़ हो सकता है। मनुष्य के बाद गुणस्थानों की दृष्टि से दूसरा स्थान पशु का है। देवगति और नरक गति तो नंबर तीन पर आती है। मनुष्य में तो सारे के सारे गुणस्थान उपलब्ध हो सकते हैं। संज्ञी तिर्यन्च पंचेन्द्रिय पशु में पंचम गुणस्थान उपलब्ध हो सकता है। देव और नरक गति में तो चौथे गुणस्थान के आगे नहीं पाया जाता है।
मनुष्यों में साधु भी मिलते हैं। पूरी सृष्टि में कहीं न कहीं साधु अवश्य मिलते हैं। संत है तो संतुलन है, पाप है तो धर्म भी है। तीर्थंकर भी हमेशा रहते हैं। साधु का जीवन साधनामय हो। साधु-साधु में तारतम्य हो सकता है। साधु से भी भूल हो सकती है। छठे गुणस्थान के दोष से छठा गुणस्थान नहीं जाता। पुलाक नियंठा वाला भी साधु होता है। छठे गुणस्थान का दायरा लंबा चौड़ा है। प्रमाद का परिष्कार करने की व प्रायश्चित की भावना होनी चाहिए। साधु के लिए दोषों की शुद्धि के लिए दो उपाय है - प्रायश्चित और प्रतिक्रमण। साधु इनके प्रति जागरूक रहे। साधु मेधावी और तपस्या करने वाला हो।
साधु तो तपोधनी, अकिंचन होते हैं। जिसने सब कुछ छोड़ दिया वह बड़ा मालिक होता है। हमारे धर्म संघ में अनेक बड़े-बड़े तपस्वी हुए हैं और वर्तमान में भी है। साधु के जीवन में साधना होती है। हमारे साधु-साध्वियां अनेक वैशिष्ट्य गुणों वाले हैं, अनेक डिग्रियां धारक साधु-साध्वियां हैं। उपाधि अपना प्रभाव छोड़ सकती है पर इन सबसे बड़ी उपाधि तो साधुता है।
चतुर्दशी के अवसर पर हाजरी का वाचन कराते हुए पूज्यवर ने कहा कि पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्ति ये तेरह हमारी मूल पूंजी है। हमारे धर्म संघ में पद का महत्व है, डिग्रियां गौण है। चारित्र का, साधना का अपना महत्व है। सबमें परस्पर सौहार्द भाव रहे। पूज्य प्रवर के निर्देशानुसार मुनि मोक्षकुमारजी एवं मुनि कैवल्य कुमारजी ने लेख पत्र का वाचन किया। उपस्थित साधु-साध्वियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का वाचन किया। पूज्यवर के स्वागत में स्कूल के प्रिंसिपल प्रेमभाई चौधरी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। दो चतुर्मास करने के बाद गुरुदर्शन करने वाले मुनि यशवंतकुमारजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। मुनि मोक्षकुमारजी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। आचार्यश्री ने दोनों संतों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।