
गुरुवाणी/ केन्द्र
दुर्लभ मनुष्य जीवन का सार निकालने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
आत्म साधना में निरन्तर अग्रसर आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 13 किमी का विहार कर इन्दरवा नवा प्राथमिक शाला में पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए परम पूज्य ने फरमाया कि एक व्यक्ति कमाता भी है और खर्च भी कर देता है। खर्चा ज्यादा कर दिया तो मूल भी गंवा दिया। दूसरे ने जितना कमाया उतना खर्च कर दिया, मूल सुरक्षित रखा। तीसरे ने कमाया ज्यादा और खर्चा कम किया, उसने बहुत ज्यादा धन इकट्ठा कर लिया। धर्म की दृष्टि से हम कल्पना करें कि मनुष्य जन्म मूल पूंजी है, जो पाप कर्म करते हैं, वे मनुष्य गति से भी नीचे चले गये। मानव जीवन व्यर्थ व्यसनों में गंवा दिया। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो धर्म-ध्यान भी ज्यादा नहीं करते और पाप भी ज्यादा नहीं करते वे मृत्यु के पश्चात् मनुष्य के रूप में वापिस जन्म ले लेते हैं। मूल पूंजी मनुष्य जन्म की सुरक्षित रह गई। न कमाया, न गंवाया। कुछ लोग धर्म-ध्यान करने वाले, तपस्या, संयम की आराधना करने वाले श्रावक धर्म को पालने वाले या बालतपस्वी होते हैं, वे मनुष्य जन्म के बाद देव गति में जाते हैं। वे मूल पूंजी को बढ़ाकर आगे बढ़ते हैं।
मानव जीवन हमें प्राप्त है, इसका हमें लाभ उठाना चाहिए। धर्म की आराधना करनी चाहिए। अहिंसा-संयम और तप की साधना करनी चाहिए। मानव जीवन में साधु बनना तो बहुत ऊंची बात है। गृहस्थ में भी धर्म की कमाई कर सकते हैं। कुछ लोग तो नशे या बुरी आदतों में चले जाते हैं, वे तो धर्म-अध्यात्म की कमाई करना ही नहीं जानते वे तो संस्कार विहीन होते हैं। कुछ धर्म नहीं करते तो व्यसनों में भी नहीं जाते। कुछ गृहस्थ धार्मिक-आध्यात्मिक साधना करते हैं। साधु संतों की सेवा-उपासना करते हैं, उनके संपर्क में रहते हैं। संयम की साधना करने वाले सम्यक्त्वी होते हैं।
जैन हो या अजैन, अच्छी साधना कर कोई भी देवगति में जा सकते हैं। मोक्ष को भी प्राप्त कर सकते हैं। मोक्ष का द्वार तो मनुष्य गति है। मनुष्य गति से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। जब तक साधुत्व नहीं आता, मोक्ष नहीं मिल सकता। गृहस्थ वेष में भी साधुपन, मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। साधुपन तो भावना में आना आवश्यक है, भीतर के भाव विशुद्ध होने चाहिए। व्यवहार में वेष पहचान है, निश्चय की बात अलग है। हम त्याग-साधना कर मनुष्य जन्म का लाभ उठाने का प्रयास करें। पूज्यवर के स्वागत में स्थानीय सरपंच भूपतभाई राठौड़, प्राथमिकशाला के प्रिंसिपल प्रकाशभाई परमार व आर.एम.एस.ए. हाईस्कूल से हर्षदभाई सोलंकी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।